Monday, November 23, 2009

भाजपा तय करे शिवसेना चाहिए या राष्ट्रवाद ?


    • || संजय द्विवेदी ||
    • विचारधारा को लेकर भ्रम से गुजर रही भारतीय जनता पार्टी से लोग यह जानना चाहते हैं कि वह शिवसेना के साथ खड़ी है तो इसका कारण क्या है ? क्या भाजपा के लिए उसका सांस्कृतिक राष्ट्रवाद अब बेमानी हो गया है ? जिसके कारण वह शिवसेना जैसे दल से अपने रिश्तों को पारिभाषित नहीं कर पा रही है। क्या वृहत्तर हिंदू समाज और अन्य धार्मिक समूहों के साथ उसका संवाद शिवसेना जैसे प्रतिगामी दलों के चलते प्रभावित नहीं हो रहा है ? सही मायने में भाजपा को शिवसेना जैसे दलों से हर तरह के रिश्ते तोड़ लेने चाहिए क्योंकि शिवसेना की राजनीति का आज के भारत में कोई भविष्य नहीं है।
    • माना कि कांग्रेस ने अपनी राजनीति को बढ़ाने के लिए फूट डालो और राज करो की रणनीति पर चलना उचित माना, जिसका लाभ भी उसे साफ तौर पर मिला। किंतु क्या इससे भाजपा का पाप कम हो जाता है। भाजपा नेतृत्व को दिल पर हाथ रखकर ये सोचना होगा कि क्या किसी उत्तरभारतीय ने शिवसेना से बीजेपी के रिश्तों को देखते हुए मुंबई में बीजेपी को वोट दिया होगा?
    • देखा जाए तो भाजपा और शिवसेना का रिश्ता इसलिए संभव हो पाया कि शिवसेना ने अपनी उग्र क्षेत्रवाद की राजनीति का विस्तार करते हुए हिंदू एकता की बात शुऱू की थी। हिंदुत्व भाजपा और शिवसेना की दोस्ती का आधार रहा है। राममंदिर के आंदोलन में दोनों दलों की वैचारिक एकता ने इस दोस्ती को परवान चढ़ाया था। भाजपा के नेता स्व. प्रमोद महाजन ने इस एकता के लिए काफी काम किया। महाजन में यह क्षमता थी वो बाल ठाकरे को सही रास्ते पर ले आते थे।
    • ( लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष हैं)