Monday, January 11, 2010

स्वामी विवेकानंद का वह सपना

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    • घनश्याम सक्सेना
    • अमेरिका में शिकागो की धर्म-संसद का समापन हो चुका था। अमेरिका और यूरोप समेत सारा पश्चिम स्वामी विवेकानंद के आध्यात्मिक अश्वमेध के आगोश में था। तीस दिसंबर 1896 को यूरोप के संक्षिप्त प्रवास के बाद स्वामीजी नेपल्स बंदरगाह से उस स्टीमर द्वारा रवाना हुए, जो 15 जनवरी 1897 को कोलंबो पहुंचने वाला था। इसी समुद्री यात्रा के दौरान उन्होंने नेपल्स और पोर्ट सईद की बीच एक अद्भुत स्वप्न देखा। एक ऋषि-आकृति ने अचानक प्रकट होकर उनसे कहा- "ध्यान से देख! यह ईसाइयत की मातृभूमि है। मैं थेरापुत हूं। हमने जो शिक्षा दी थी, उसे ईसाइयों ने ईसा की शिक्षा कहकर प्रचारित किया है। सच तो यह है कि जीसस नामक किसी व्यक्ति का कभी जन्म ही नहीं हुआ था। पुराकालीन खोज ही इसका पता देगी।"

      स्वामीजी की नींद खुल गई। उन्होंने डैक पर जाकर पूछा- "हम कहां हैं?" उन्हें बताया गया कि स्टीमर क्रीट से पचास मील के आसपास है। ईसाइयत की स्थानीयता और जीसस क्राइस्ट से जुड़े इस तत्व ने स्वामीजी के स्वप्न को एक सर्वथा नया रूप दे दिया।

      थेरा एक अति प्राचीन बौद्ध भिक्षु थे। थेरावत यानी भेरा के पुत्र अथवा अनुयायी।
    • एक दिन लोगों ने स्वामीजी से जीजस के बालस्वरूप को आशीर्वाद देने को कहा। उन्होंने ऎसा न करके जीसस के चरण स्पर्श करते हुए कहा कि "अगर मैं जीसस के समकालीन पेलिस्टाइन में होता तो उनके चरण अपने आंसुओं से न पखारकर रक्त से पखारता। मैं बाल जीसस और बाल कृष्ण के बारे में सोचकर समान रूप से भाव-विह्वल हो जाता हूं। मेरे लिए सभी धर्म स्वदेशी हैं, क्योंकि मैं विश्व मानवता का स्वप्नदर्शी हूं।"

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