नववर्ष मनाने की परंपरा: "
  विक्रम संवत में  नववर्ष की शुरुआत चंद्रमास के चैत्र माह के उस दिन से होती है जिस दिन  ब्रह्म पुराण अनुसार ब्रह्मा ने सृष्टि रचना की शुरुआत की थी। इसी दिन से  सतयुग की शुरुआत भी मानी जाती है। इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार  लिया था। इसी दिन से नवरात्र की शुरुआत भी मानी जाती है। इसी दिन को भगवान  राम का राज्याभिषेक हुआ था और पूरे अयोध्या नगर में विजय पताका फहराई गई  थी। इसी दिन से रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है।  ज्योतिषियों  के अनुसार इसी दिन से चैत्री पंचांग का आरम्भ माना जाता है, क्योंकि चैत्र  मास की पूर्णिमा का अंत चित्रा नक्षत्र में होने से इस चैत्र मास को  नववर्ष का प्रथम दिन माना जाता है।  नववर्ष मनाने की परंपरा : रात्रि  के अंधकार में नववर्ष का स्वागत नहीं होता। नया वर्ष सूरज की पहली किरण का  स्वागत करके मनाया जाता है। नववर्ष के ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि  से निवृत्त होकर पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से घर में सुगंधित वातावरण  कर दिया जाता है। घर को ध्वज, पताका और तोरण से सजाया जाता है "