Monday, May 9, 2011

ऐसा होगा हिंदुओंका आदर्श ‘हिंदुराष्ट्र’ !

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पुरातन कालके श्रीराम तथा अर्वाचीन कालके छत्रपति शिवाजी महाराजद्वारा प्रस्तुत पितृशाहीका आदर्श, हिंदु समाजके लिए लाखों वर्ष बीत जानेपर भी चिरस्मरणीय और वंदनीय है । इसलिए कि उन राज्योंको धार्मिक अधिष्ठान था । इसके विपरीत, धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र सर्व क्षेत्रोंमें विफल सिद्ध होनेसे देशमें अनैतिकता, भ्रष्टाचार और अराजकता व्याप्त है । ऐसेमें धर्माधिष्ठित आदर्श ‘हिंदुराष्ट्र’ स्थापित करना, यही एकमात्र उपाय है ! हिंदु जनजागृति समिति धर्माधिष्ठित हिंदुराष्ट्रकी स्थापनाके लिए कार्यरत हैं । यह हिंदुराष्ट्र कैसा होगा, इसका विवरण करनेवाला यह लेख !

 

 


संकलनकर्ता : श्री रमेश शिंदे, प्रवक्ता, हिंदु जनजागृति समिति

आदर्श राज्यके सर्व गुण धर्माधिष्ठित हिंदुराष्ट्रमें होंगे !  

 

रामराज्य

१. रामराज्यमें दुःखी विधवा स्त्रियां अथवा अनाश्रमी न होना
२. रामराज्यमें लोकतंत्रके अनुसार प्रत्येकको ‘मत’ देनेका, अर्थात राजा चुननेका अधिकार नहीं था; किंतु प्रत्येकको ‘मत’ अमान्य करनेका अधिकार था । इसका अर्थ है कि प्रत्येकको राजासे भी अधिक अधिकार था । ‘धोबीकी पत्नी क्या करे, क्या न करे’, इसमें श्रीरामका हस्तक्षेप नहीं था; किंतु ‘श्रीरामकी पत्नी कैसा आचरण करे’, यह कहनेका अधिकार साधारणसे धोबीको था । इसीलिए उसके कहनेपर श्रीरामने अपने प्राणोंसे भी प्रिय पत्नी सीताका त्याग किया । रामराज्यमें समताका लाभ प्रजा ले रही थी, तो विषमताका दुःख श्रीराम भोग रहे थे ।’ - डॉ. वसंत बाळाजी आठवले (ई.स. १९९०)

रामराज्यकी आदर्श प्रजा

‘राम वनवासके लिए निकले । उस समय रामराज्यके शोकाकुल नागरिक रामका रथ नहीं रोक सके । उस रात्रि अयोध्याके किसी घरमें न तो दिया जला, न अग्नि प्रदीप्त हुई और न भोजन ही बना । जलविहीन सागरसमान अयोध्या निर्जन / उदास हो गई ।’ -गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (घनगर्जित, जून २००६) राज्यमें वेश्याएं नहीं थीं; कारण, वेश्याके पास जानेवाले लोग ही नहीं थे । राज्यमें चोर न होनेके कारण पुलिस भी नहीं थी । अपराध न होनेके कारण न्यायालय नहीं थे । सर्वजन धर्मनियमोंका पालन करते थे ।

ऐसा होगा सर्वगुणसंपन्न धर्माधिष्ठित हिंदुराष्ट्र !


१. शासनकी दृष्टिसे हिंदुराष्ट्र !

 १.१ शासक : शासक, धर्मपालक, सात्त्विक, नीतिमान, जनकल्याणकारी, निःस्वार्थी एवं जनतासे पितासमान प्रेम करनेवाले होंगे ! वे जनतासे धर्माचरण करवानेवाले, संतोंका मार्गदर्शन लेनेवाले, पारदर्शी कार्यव्यापार करनेवाले तथा न्यायप्रियता, नियोजनबद्धता, अनुशासनप्रियता, निर्णयक्षमता, सतर्कता  आदि प्रशासकीय दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण गुणोंसे युक्त होंगे ।

१.२ राज्यका संविधान : ‘लोकतंत्रमें संविधानकी आवश्यकता होती है, तो धर्माधिष्ठित हिंदुराष्ट्रमें धर्म ही नीति-नियमोंका मूल होनेसे राज्यको संविधानकी आवश्यकता नहीं होगी !’ – अधिवक्ता रामदास केसरकर, सनातन संस्थाके मानद विधि-परामर्शदाता

१.३ चुनाव : मतकोष, आरक्षित स्थान, हिंसाचार, ५० प्रतिशतसे अधिक लोगोंद्वारा नकारे जानेपर भी, सर्वाधिक मत मिलनेके कारण प्रत्याशियोंका जीतना आदि त्रुटिपूर्ण चुनाव हिंदुराष्ट्रमें नहीं होंगे । पात्र जनता पात्र और योग्य नागरिकको राज्यकार्यव्यापार करनेके लिए कहेगी ।

१.४ राज्यका कार्यव्यापार : राज्यका कारभारसंबंधी निर्णय बहुमतके बलपर नहीं, अपितु योग्य और आवश्यक तत्त्वोंका विचार कर लिया जाएगा । उसमें पारदर्शकता होगी ।

२. न्यायकी दृष्टिसे हिंदुराष्ट्र !

२.१ न्यायदान : न्यायाधीश सूक्ष्म आयामके जानकार होंगे, इसलिए अन्यायग्रस्तोंको योग्य और तुरंत न्याय मिलेगा ! इस कारण, न्यायप्रणालीमें अधिवक्ताओंकी आवश्यकता नहीं होगी । हिंदुराष्ट्रमें लोकतंत्रकी भांति ‘कानूनका राज्य’ (कोर्ट ऑफ लॉ) नहीं; अपितु ‘न्यायका राज्य’ (कोर्ट ऑफ जस्टिस) होगा ।

 २.२ कानून : सर्व कानून हिंदुहितमें होंगे । धर्मांतरण, विधिद्वारा प्रतिबंधित होगा । इस कारण, किसीको फंसाकर धर्मांतरित नहीं किया जा सकेगा । गोवंशहत्याबंदी कानून होगा । अल्पसंख्यकोंका
तुष्टीकरण नहीं होगा । सर्व नागरिकोंके लिए ‘समान नागरी कानून’ होगा !
 

३. प्रशासकीय दृष्टिसे हिंदुराष्ट्र !

३.१ आरक्षक (पुलिस) एवं प्रशासन : हिंदुराष्ट्रमें शासन, प्रशासन, सुरक्षा बल और न्यायालयोंमें केवल राष्ट्र  एवं धर्मप्रेमी होंगे ।

३.२ आरक्षणमुक्त पदोन्नति : हिंदुराष्ट्रमें आरक्षण नहीं होगा । वर्तमान लोकतंत्रमें जाति अथवा धर्मके आधारपर लोगोंको दी गई सर्व नौकरियां, उनमें योग्यता होनेपर ही हिंदुराष्ट्रमें पूर्ववत जारी रहेंगी अन्यथा उन नियुक्तियोंको निरस्त कर दिया जाएगा ! अधिकारियोंको उनकी योग्यताके अनुसार, अर्थात लगन, भाव, प्रीति, नेतृत्वगुण एवं अहंभाव अल्प इत्यादि गुणोंके आधारपर ही बढोत्तरी मिलेगी ।

४. संरक्षणकी दृष्टिसे हिंदुराष्ट्र !

४.१ सीमा : हिंदुराष्ट्रमें देशकी सर्व सीमा सर्वप्रथम सुरक्षित की जाएंगी । घुसपैठपर अंकुश लगानेके लिए कठोर कानून बनाए जाएंगे ।

 ४.२ संरक्षण : देशकी अंतर्बाह्य सुरक्षाको प्रथम वरीयता होगी । आतंकवादी (बाह्य) और नक्सलवादी (अंतर्गत) शत्रुओंका निर्मूलन किया जाएगा । इस कारण प्रजा सुरक्षित जीवन यापन कर सकेगी !

५. आर्थिक दृष्टिसे हिंदुराष्ट्र !

वर्तमानमें अर्थशास्त्रकी पश्चिमी व्याख्या, ‘आवश्यकता अमर्यादित और आपूर्ति मर्यादित, इनमें सामंजस्य स्थापित करनेवाला शास्त्र’ है । इस व्याख्यामें सर्वजनोंकी आवश्यकताओंकी पूर्ति होती नहीं दिखाई देती । हिंदुराष्ट्रके अर्थशास्त्रानुसार सर्वजनोंको आवश्यकतानुसार सब मिलेगा, अर्थात सर्वजन सुखी होंगे । संक्षेपमें, हिंदुराष्ट्रमें अर्थशास्त्र कौटिल्यके अर्थशास्त्रपर आधारित ‘सर्वे संतु निरामयः’, यह वचन सार्थक करनेवाला होगा । कालाधन और भ्रष्टाचार न होनेके कारण और जनता उद्यमशील वृत्तिकी होनेके कारण देशकी अर्थव्यवस्था उत्तम होगी । उसमें देशवासियोंका पैसा उन्हींके कल्याणके लिए व्यय किया जाएगा । भाववृद्धि और शेअर बाजार जैसे जुएके अड्डे भी हिंदुराष्ट्रमें नहीं होंगे । राष्ट्रीय प्रगतिके लिए आवश्यक उतना ही कर उगाहनेवाली कौटिल्यकी अर्थनीतिपर
आधारित करव्यवस्था हिंदुराष्ट्रमें होगी ।

५.१ उद्योगीकरण : ‘उद्योगीकरणके कारण नागरिकोंकी सादी जीवनशैली नष्ट होकर भोग-विलास आवश्यक लगने लगता है । इस कारण भोगवाद बढता है । हिंदुराष्ट्र धर्माधिष्ठित होनेके कारण वह उद्योगीकरणको नियंत्रित रखेगा और योग्य दिशा भी देगा । हिंदु धर्मने विशिष्ट आयुके पश्चात व्यक्तिको निवृत्तिका मार्ग बताया है । इस निवृत्तिमार्गके कारण सांसारिक उपभोग सीमित होकर उससे संबंधित वस्तुओंके उत्पादनपर अपनेआप ही अंकुश लगेगा ।
 

५.२ उत्पादन : हिंदुराष्ट्रमें स्वदेशी अस्मिताका पोषण किया जाएगा । नागरिक स्वदेशी वस्तु ही क्रय करेंगे । भौतिक सुखवाद नहीं; अपितु धर्मानुकूल हिंदु जीवनपद्धति वेंâद्रबिंदु होगी । इससे सुखवादी उत्पादनोंको प्रोत्साहन नहीं मिलेगा ।

 ५.३ कृषि : सात्त्विक, राष्ट्रीय आवश्यकताएं पूर्ण करनेवाले और राष्ट्रीय प्रगतिके लिए पोषक अन्न ही कृषक बोएंगे । भारतको अन्न-धन और मूलभूत आवश्यकताओंके संबंधमें स्वयंपूर्ण बनाना, यह कृषि
विभागका ध्येय होगा ।

 ५.४ उपजीविका : लोग बाहुबल और ज्ञानके द्वारा द्रव्यार्जन करेंगे । नागरिकोंकी कार्यक्षमता बढेगी, इस कारण श्रमशक्ति एवं ज्ञानशक्ति वृद्धिंगत होगी । जनता कृपण नहीं; अपितु मितव्ययी होगी ।

६. शैक्षणिक दृष्टिसे हिंदुराष्ट्र !

६.१ शिक्षण : मैकॉलेप्रणीत शिक्षणपद्धति हटाकर, आदर्श गुरुकुल पद्धति अस्तित्वमें लाई जाएगी । इस शिक्षणपद्धतिके कारण विद्यार्थी आत्मनिर्भर, ज्ञानी, स्वाभिमानी, राष्ट्रप्रेमी तथा आत्मबल और क्षात्रतेजसे संपन्न होंगे ।

६.२ धर्मशिक्षण : विद्यालयस्तरसे ही धर्मशिक्षण दिए जानेसे भावी पीढी संस्कारित एवं नीतिमान होगी । हिंदु धर्मग्रंथोंकी सीख देनेवाले ‘विद्यालयों’की स्थापना की जाएगी । गुरु-शिष्य-परंपरा पुनरुज्जीवित की जाएगी ।

६.३  अध्यात्म विश्वविद्यालय : अध्यात्ममें प्रगति करनेकी इच्छा रखनेवालोंके लिए ‘अध्यात्म विश्वविद्यालयों’की स्थापना की जाएगी । इस विद्यालयसे उत्तीर्ण होकर बाहर जानेवाले विद्यार्थी संत ही होंगे ।

६.४ इतिहास : भारतके प्राचीन गौरवशाली इतिहासका पुनर्लेखन कर हिंदुओंका सत्य और राष्ट्रभक्तियुक्त क्षात्रवृत्ति जागृत करनोवाला इतिहास विद्यालयोंमें सिखाया जाएगा । हिंदुओंके तेजस्वी इतिहासका प्रमाण देनेवाली ऐतिहासिक वस्तुओं और वास्तुको संजोया जाएगा ।

६.५ विज्ञान : ‘विज्ञानके लिए विज्ञान’, वैज्ञानिक शोधका यह स्वरूप न रहकर, वह मानवजातिके लिए पूरक होगा । विज्ञानकी सीमाएं भी बताई जाएंगी ।

६.६ कला : ‘मात्र कलाके लिए कला’ नहीं; अपितु ‘ईश्वरप्राप्तिके लिए कला’, इस दृष्टिसे कलाका विकास किया जाएगा ।

७. सांस्कृतिक दृष्टिसे हिंदुराष्ट्र !

७.१ मनोरंजन : संगीत, दूरदर्शन, क्रीडा, यात्रा, वर्तमानपत्र, ये केवल मनोरंजनके साधन नहीं होंगे; अपितु इनके माध्यमसे समाज एवं राष्ट्रकी प्रगतिके लिए पोषक, वैचारिक विकासकी ओर ध्यान दिया जाएगा ।

७.२ सार्वजनिक स्थानोंके नाम और पुतले : ‘मार्गोंको, विविध प्रतिष्ठानोंको दिए गए राजनेताओंके नाम, उनके खडे किए गए पुतले तथा केवल १-२ पीढियों तक ही ज्ञात नामोंके रास्ते, पुतले इत्यादि हिंदुराष्ट्रमें नहीं होंगे । उनके स्थानपर देवता, संत, ऋषिमुनि, कालिदास समान अभिजात लेखकोंके नाम मार्गोंको दिए जाएंगे ।

७.३ राष्ट्रीय दिवस : हिंदुराष्ट्रमें प्रत्येक दिवस आध्यात्मिक लाभकी दृष्टिसे मनाया जाएगा, उदा. ‘शिक्षकदिवस’ गुरुपूर्णिमापर, ‘आरोग्यदिवस’ धन्वंतरी जयंतीपर, ‘कलादिवस’ महाशिवरात्रिपर (नृत्य और
संगीत शिवसे उत्पन्न हुए ।), तो ‘न्यायदिवस’ यमद्वितीयापर ।

८. धार्मिक दृष्टिसे हिंदुराष्ट्र !

८.१ देवालय : देवालयोंके न्यासी और सेवाधारी भक्त होंगे तथा देवनिधिका उपयोग धर्मकार्यके लिए ही होगा ! देवताओंके उत्सवमेलोंसे श्रद्धालुओंको आध्यात्मिक लाभ होनेके लिए उत्सवमेलोंकी गुणवत्ता सुधारी जाएगी ।

८.२ देवताओंकी मूर्ति : देवालयोंमें देवताओंकी मूर्तियां संबंधित देवताके अधिकाधिक तत्त्व और सात्त्विकता प्रक्षेपित करनेवाली होंगी । इस कारण, श्रद्धालुओंकी भावजागृति सहजतासे होगी ।

हिंदुओ, अपेक्षित हिंदुराष्ट्र वास्तवमें साकार होनेके लिए प्रतिज्ञा करें ! रामराज्यकी प्रजा धर्माचरणी थी । इसीलिए उसे श्रीराम समान सात्त्विक राजा शासकके रूपमें मिला । हम भी धर्माचरणी बनें, तो इस कलियुगमें भी रामराज्य, अर्थात धर्माधिष्ठित हिंदुराष्ट्र अवतरित होगा !