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Jagran - Yahoo! India - Opinion News
- एक जमाने में भारत के नक्सलियों और माओवादियों को प्रोत्साहन लाल चीन से मिला करता था। आज उनके पैरोकार अमेरिका और पश्चिमी यूरोप में देखे जा रहे हैं।
- सेन रायपुर में न तो डॉक्टर और न ही समाज सेवी के रूप में कभी प्रसिद्ध थे। उनकी गिरफ्तारी पर रायपुर में कोई हलचल नहीं हुई। सारी सरगर्मी दिल्ली, मुंबई, पेरिस और लंदन से चली। साफ है कि अपील करने वाली विदेशी संस्थाओं, व्यक्तियों को किन्हीं समर्थ एजेंसियों द्वारा बताया गया कि विनायक सेन बड़े मानवाधिकार कार्यकर्ता और सेवाधर्मी डाक्टर हैं जिन्हें परेशान किया जा रहा है।
- अब तक भारत में कम से कम तीन नक्सल समर्थक लेखकों, प्रचारकों को रमन मैग्सेसे पुरस्कार दिया जा चुका है। यह पुरस्कार अमेरिका के प्रसिद्ध रॉकफेलर फाऊंडेशन द्वारा स्थापित एवं फोर्ड फाऊंडेशन द्वारा वित्त पोषित है। यह बात उठती रही है कि ऐसे पुरस्कार एशिया के विभिन्न देशों में सरकार विरोधी, विशेषकर स्थानीय सभ्यता-संस्कृति विरोधी कार्यकर्ताओं को दिये जाते रहे हैं।
- जब विनायक सेन ने चिकित्सा क्षेत्र में कोई शोध नहीं किया, तब उन्हें अमेरिका में ग्लोबल हेल्थ काउंसिल द्वारा चिकित्सा का 'जोनाथन मान पुरस्कार' किस बूते दिया गया? उन्हें सोशल साइंस के क्षेत्र में योगदान के लिए रेवरेंड कैथान पुरस्कार भी मिला। यह समझ से परे है कि नक्सली समर्थकों को ईसाई मिशनरियां किस वजह से पुरस्कृत कर रही हैं? फ्री विनायक सेन कैंपेन चेन्नई की 'पीपुल्स वाच' जैसी संस्था चला रही है, जिसका लगभग पूरा वित्तीय पोषण हालैंड की कैथोलिक आर्गनाइजेशन फॉर रिलीफ एंड डेवलपमेंट जैसे मिशनरी संगठन करते हैं। यही संस्था भारत में हिन्दू विरोधी राजनीतिक अभियान में भी सक्रिय है। विनायक सेन के बचाव में लिखने-बोलने वालों में से कई मुहम्मद अफजल को फांसी से बचाने के आदोलन में भी थे। नक्सलियों व आईएसआई के बीच संबंध की खबरे भी पिछले दस वर्ष से सामने आती रही हैं।
- एस.शकर : लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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