Thursday, September 17, 2009

कारगिल शहीदों की उपेक्षा

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    • अतीत के स्वर्णिम अवसरों की स्मृति को जागृत करने का एक भी उपाय करने की बजाय गुलामी की मानसिकता के प्रतीकों को संरक्षित कर गाढ़ा बनाया जा रहा है। इस भाव का एक भोड़ा उदाहरण है उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जनपद में स्थित लार्ड कार्नवलिस की कब्र। साठ के दशक में राम मनोहर लोहिया के विदेशी दासता के प्रतीक अंग्रेज शासकों की मूर्तिया सार्वजनिक स्थानों से हटाये जाने का अभियान की सफलता ने उनके नाम पर सड़कों और संस्थाओं के नामों को बदलने की भी प्रेरणा दी, लेकिन कार्नवालिस की कब्र के सामने अत्यंत अपमानजनक स्थिति में भारतीय समाज को प्रदर्शित करने का दृश्य अब तक अप्रभावित है। कब्र के पास कार्नवालिस की एक मूर्ति खड़ी है। उसके सामने कोर्निस बजाते हुए धोती, चोटी और जनेऊधारी एक हिंदू तथा तुर्की टोपी पहने एक मुसलमान की छोटी मूर्तिया बनी हैं। आश्चर्य है कि जिस पूर्वाचल की धरती को 1942 में अंग्रेजी साम्राज्य से मुक्त करा लिया गया था, उसकी छाती पर यह कलंक कैसे सुरक्षित है? ऐसा शायद इसलिए है, क्योंकि 15 अगस्त 1947 के बाद से हमने जिस स्वाभिमान को जागृत कर आजादी की जंग लड़ी थी उसका परित्याग कर परानुकरण की दिशा पकड़ लिया है।
    • [राजनाथ सिंह सूर्य: लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं]