Thursday, October 29, 2009

वो जो चुप न रह सका: मासूम माओवादी, और भूख दो कौर रोटी की. उफ!

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    • नक्सलियों के भोलेपन की एक और उदाहरण दिया इनके एक नेता किशनजी ने, यह खुला चैलेन्ज दिया कि 2011 तक वह कलकत्ता में नक्सली संघर्ष शुरु करवा देगा.
    • नक्सली भूख भोजन नहीं, सत्ता की है
      नक्सली नेताओं ने भूख को भुनाने का पुराना फार्मूला बस उपयोग भर ही किया है. इसके नाम पर चार-छ: क्रांती ये दूसरे देशों में करा चुके हैं. वहां के बड़े-बड़े पैलेसों में इनके नेता अब माल उड़ा रहे हैं लेकिन लोग अभी भी भूखें हैं. क्या है कोई नक्सली जो इस सच्चाई को भी झुठला सके?

      नक्सली कहते हैं – जहां हक न मिले वहां लूट सही, जहां सच न चले, वहां झूठ सही