Friday, October 16, 2009

visfot.com । विस्फोट.कॉम - डॉ कोठारी का 'दाल सत्याग्रह'

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    • करीब दो दशक से डॉ. शांतिलाल कोठारी देश के सभी राज्यों में इस दाल की बिक्री पर लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। इस दाल की बिक्री व संग्रह पर लगा प्रतिबंधन महाराष्ट्र, छतीसगढ़ और पश्चिम बंगाल सरकार हआ चुकी है। डॉ. कोठारी का कहना है दाल के भाव आसमान छू रहे हैं। आम और खास लोग भी दाल की महंगाई से त्रस्त हैं। लाखोड़ी दाल का उत्पादन मूल्य बेहद कम होता है।  इसलिए देश के अन्य राज्यों में भी इसकी बिक्री व संग्रह की अनुमति मिले। इसके लिए डॉ. कोठारी गुरूवार को अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं। उनका कहना है कि उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो वह अपने प्राण इस आंदोलन की खातिर त्याग देंगे।
    • इससे पहले भी डा. कोठारी सरकार के खिलाफ सत्याग्रह कर चुके हैं। पिछली बार 60 दिनों का अन्न त्याग सत्याग्रह आंदोलन के दौरान उनकी  ओपन हार्ट सर्जरी भी की गई थी। उन्हें डॉक्टरों ने हमेशा समय पर दवाइयां लेने का निर्देश दिया हैं। इसके बाद भी डॉ. कोठारी ने गुरूवार से आंदोलन शुरू कर दी और उन दवाओं को खाना छोड़ दिया है जिसे खाने की सलाह डाक्टर ने दी है।
    • दालों की कमी आज पूरे देश की समस्या है। नेता उसकी चिंता, चर्चा एवं उपाय करते नहीं थक रहे हैं। किन्तु उसके हल का मार्ग बताने वाले एक भारतीय वैज्ञानिक द्वारा प्राणों की बाजी लगा देने के बावजूद उसकी बातों को नजर अंदाज किया जा रहा है। इससे साबित होता है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को नकली हानिकारक तुअर दाल को बेचने एवं धन कमाने का मौका देने में हर सरकार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है।
    • डॉ. कोठारी का कहना है कि यह आश्चर्य से कम नहीं है कि खेसारी दाल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं है, इसका वैज्ञानिक प्रमाण हो जाने के बाद महाराष्ट्र सरकार ने वर्ष 2008 में खेसारी दाल पर से प्रतिबन्ध तो जरूर हटा लिया, किन्तु  बार-बार आग्रह करने के बावजूद इस दाल के उत्पादन के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किया। इस साल देश में देर से आये मानसून के कारण परेशान एवं पीड़ित किसानों के लिए खेसारी की फसल वरदान है, किन्तु कृषि विभाग किसानों की फसल का उत्पादन बढ़ाने का आव्हान करने का कोई प्रयास नहीं किया जाना, चिंता की बात है।

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