Friday, October 16, 2009

visfot.com । विस्फोट.कॉम - बीटी बैंगन के सवाल पर मुखर हुए जनसंगठन

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    • 16 अक्टूबर को विश्व खाद्य दिवस की पूर्व संध्या पर तथा भारत की केंद्रीय नियामक इकाई द्वारा भारत की पहली जीएम खाद्य फसल के रूप में बीटी बैंगन को मंजूरी दिए जाने के ठीक एक दिन बाद उपभोक्ता अधिकार समूहों और रेजिडेंट वेलफेयर असोसिएशनों ने दिल्लीवासियों से जीएम (जैव-संशोधित) खाद्य पदार्थों को खारिज करने की अपील की क्योंकि ये सेहत को तमाम किस्म के खतरे पैदा करते हैं।
    • दिल्ली के रेजिडेंट वेलफेयर असोसिएशनों के संघ युनाइटेड रेजिडेंट्स ज्वाइंट एक्शन फोरम के समन्वयक जसबीर चड्ढा ने कहा, `यदि बीटी बैंगन बाजार में आ गया, तो ऐसा कोई तरीका नहीं होगा जिससे उपभोक्ता प्राकृतिक और बीटी बैंगन के बीच अंतर कर सकेगा क्योंकि दोनों ही देखने में एक से लगते हैं। इसलिए यह उपभोक्ताओं से पूर्व सूचित चयन के अधिकारों को छीन लेता है।´´ यह संघ दिल्ली के उपभोक्ताओं के बीच जीएम खाद्य पदार्थों पर एक जागरूकता अभियान चला रहा है और उसे उम्मीद है कि लोगों के बीच सुरक्षित भोजन के अधिकारों पर एक बहस को जन्म दिया जा सकेगा ताकि वह अधिकार बचा रह सके। 
    • पीपंल्स एक्शन एड के श्री संजय कौल ने कहा कि एक ऐसे वक्त में जब दुनिया भर में अधिकतर जगहों को ``जीएम मुक्त´´ घोषित किया जा रहा हो और जीएम फसलों पर प्रतिबंध लगाया जा रहा हो, भारतीय नियामकों द्वारा बीटी बैंगन को मंजूरी दिया जाना अपने आप में गलत फैसला है क्योंकि इसे दुनिया में अन्य किसी भी जगह मंजूरी नहीं दी गई है। उन्होंने कहा कि, ``बीटी बैंगन भारत में ही पैदा होने वाले प्राकृतिक बैंगन को नष्ट कर डालेगा।´´
    • कंज्यूमर्स इंटरनेशनल (यूके) के सदस्य कंज्यूमर्स फोरम ने भी जीईएसी द्वारा बीटी बैंगन को दी गई मंजूरी पर आपत्ति जताई है। फोरम के निदेशक सुनील प्रकाश ने कहा, ``हमने सुना है कि अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने में इस पैनल और विशेषज्ञ समिति ने जो प्रक्रिया अपनाई है, वह समस्याग्रस्त है। भोजन जैसी बुनियादी चीज के संदर्भ में मंजूरी के लिए अपनाई गई प्रक्रिया में पारदर्शिता या सार्वजनिक विमर्श का घोर अभाव निराशाजनक है और यह ब्रिटेन जैसे देशों के अनुभवों से ठीक उलट है, जहां सरकार ने जीएम फसलों पर राष्ट्रीय स्तर पर एक बहस चलाई थी जिसका नाम था `जीएम नेशन´, जिसका नतीजा यह हुआ कि जीएम खाद्य पदार्थों को पूरी तरह खारिज कर दिया गया। भारतीयों को ``प्रयोगशाला के चूहों´´ में तब्दील नहीं किया जा सकता और यह काफी गंभीर चिंता का विषय है।´´

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