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- कल 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर्व का आगमन हो रहा है,जिसे कि तिल संक्रांति भी कहा जाता है। यही एकमात्र पर्व है जिसे समूचे भारतवर्ष में मनाया जाता है, चाहे इसका नाम प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हों।
- हमारे ऋषि-मुनियों नें इस पर्व के साथ एक प्रावधान जोड रखा है कि आज के दिन तिल, गुड़ के बने पदार्थों का सेवन करें और यथासामर्थ्य इन्ही वस्तुओं,पदार्थों का दान भी करें। दरअसल वातजन्य विकारों से बचने के लिए तिल सेवन के प्रयोजन के लिए ही तिल सक्रांति पर्व का निर्धारण किया गया है। यदि इस समय गुड,तिल का सेवन न किया जाए तो वसंत ऋतु में कफ तथा वर्षा ऋतु में वात रोग से पीडित होने की संभावनाएं बढ जाती हैं। इन्ही पदार्थों का दान करना भी इसलिए कहा गया है ताकि समाज का जो गरीब भिखारी वर्ग हैं, जो इन पदार्थों पर धन व्यय नहीं कर सकता, वो लोग भी इनका सेवन कर सकें।
- प्रत्येक धर्म ग्रन्थ में सिर्फ ब्राह्मण को ही दान लेने का अधिकारी इसलिए कहा गया है क्यों कि प्राचीनकाल में ब्राह्मण वर्ग एक तपा हुआ, परखा हुआ, चरित्रवान और लोकसेवी जन समुदाय था, जिसका सारा समय शास्त्र अध्ययन, समाज को शिक्षित करने, धार्मिक कृ्त्यों एवं अन्य लोक हितार्थ कार्यों में ही व्यतीत हो जाता था। उनके व्यक्तिगत व्यय की सीमाऎं बिल्कुल न्यून हुआ करती थी ओर उनके सारे प्रयत्न समाज हित की योजनाएं संजोने में हुआ करते थे। इसलिए उसके जीवन निर्वाह का भार समाज के अन्य वर्गों पर डाल कर दान देने की एक व्यवस्था बनाई गई थी ।
- आज वैसी स्थिति नहीं रही........आज समाज का ढाँचा पूरी तरह से बदल चुका है-----आज ब्राह्मण वर्ग पर समाज को शिक्षित करने, ज्ञान विस्तार ओर मार्गदर्शन की कैसी भी जिम्मेवारी का कोई बोझ नहीं है कि उसकी उदरपूर्ती, उसके जीवन निर्वहण के बारे में समाज के अन्य वर्गों को सोचना पडे। इसलिए ब्राह्मण को दान देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री न मानकर दान के लिए किसी निर्धन, लाचार, दीन-हीन प्राणी का चुनाव करें तो ही आपके द्वारा किया गया दान सही मायनों में पुण्यदायी हो सकता है।
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