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पुण्य के साथ शुभ कार्य से ही मिलेंगे परमात्मा
- पं. विजयशंकर मेहता
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जीते-जी पुनर्जन्म हो जाए तो जैन धर्म के महावीर स्वामी के अनुसार साधुता घट जाएगी और हिंदू धर्म के शंकराचार्य के मुताबिक ब्राह्मणत्व उतर जाएगा। हिंदुओं ने इसी को द्विज कहा है और जैनियों ने मुनि माना है। महावीर स्वामी का एक सूत्र है- जो पुण्य की इच्छा करता है, वह संसार की ही इच्छा करता है।
पुण्य सुगति हेतु आवश्यक है, पर निर्वाण तो पुण्य के क्षय से ही होता है। इसमें निर्वाण शब्द का अर्थ है जीवन का समापन और पुनर्जन्म की संभावना का समाप्त होना, लेकिन निर्वाण अपने आप में द्विज तथा मुनि होने की यात्रा है। उसके बिना परमात्मा तक नहीं पहुंच सकते। केवल पुण्य करने से परमात्मा नहीं मिलेगा। शुभ कार्य किए जाएं किंतु उसमें त्याग की भावना हो। पुण्य अर्जित करने के लिए दान का बड़ा महत्व है। अपरिग्रह वृत्ति के अभाव में किया गया दान अभिमान बढ़ाता है।
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जीते-जी पुनर्जन्म हो जाए तो जैन धर्म के महावीर स्वामी के अनुसार साधुता घट जाएगी और हिंदू धर्म के शंकराचार्य के मुताबिक ब्राह्मणत्व उतर जाएगा। हिंदुओं ने इसी को द्विज कहा है और जैनियों ने मुनि माना है। महावीर स्वामी का एक सूत्र है- जो पुण्य की इच्छा करता है, वह संसार की ही इच्छा करता है।
पुण्य सुगति हेतु आवश्यक है, पर निर्वाण तो पुण्य के क्षय से ही होता है। इसमें निर्वाण शब्द का अर्थ है जीवन का समापन और पुनर्जन्म की संभावना का समाप्त होना, लेकिन निर्वाण अपने आप में द्विज तथा मुनि होने की यात्रा है। उसके बिना परमात्मा तक नहीं पहुंच सकते। केवल पुण्य करने से परमात्मा नहीं मिलेगा। शुभ कार्य किए जाएं किंतु उसमें त्याग की भावना हो। पुण्य अर्जित करने के लिए दान का बड़ा महत्व है। अपरिग्रह वृत्ति के अभाव में किया गया दान अभिमान बढ़ाता है।
दान में त्याग की भावना उसे शुद्धता की ओर ले जाएगी। महावीर स्वामी ने कहा है शुभ-अशुभ का त्याग कर दो, तब शुद्ध की ओर यात्रा होगी। इसकी फिक्र न की जाए कि हमसे कितना शुभ हुआ है कितना अशुभ। चिंता इस बात की की जाए कि शुद्ध की ओर कैसे बढ़ें। इस शुद्ध में ही परमसत्ता विराजित है। हिंदुओं ने इसे ही ब्राह्मणत्व से जोड़ा है। ब्राह्मण यानी शुद्ध होना। यह भी कहा गया है कि जन्म से सभी शुद्र होते हैं। आगे जाकर कमरानुसार कुछ ब्राह्मणत्व को प्राप्त हो जाते हैं। इसीलिए जन्म होने के बाद भी जन्म लेना पड़ता है। इस पुनर्जन्म को द्विज कहा गया है। इसलिए हमारी तैयारी शुद्धता की होनी चाहिए तन, मन और धन से।
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