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पुण्य प्रसून बाजपेयी: कितना खतरनाक है किसान का सच
- मेरे पास पन्द्रह एकड़ जमीन है । मैं छतरपुर से चालीस किलोमॉीटर दूर विजावर में जसगुआं खुर्द गाव का जमींदार हूं । मैं आपसे पांच रुपये ज्यादा लेकर क्या करुंगा । मामला सिर्फ आम की सूखी लकड़ियों के मोल भाव का था । उसने पैंतीस रुपये मांगे और मैं तीस रुपये देने की बात कर रहा था। बस इसी बात पर वह बुजुर्ग व्यक्ति फूट पड़ा। इस तरह फूटा की उसकी आवाज में आक्रोष था, लेकिन आंखों में आंसू भी थे । आंसुओं में लाचारी कहीं ज्यादा थी। मानसून आया नहीं तो गांव में रह कर क्या करता। जमीन फट रही है। सोयाबिन की फसल जो अब तक जवान हो जाती है, इस बार बुआई तक नहीं हुई। पिछले साल 15 मई तक बुआई का काम पूरा हो गया था लेकिन अब तो जुलाई शुरु हो गया। गांव में जमींदार बनकर ऐसे ही कोई कैसे रह सकता है। खुद का पेट खाली होगा तो गांववालों के हक के लिये आवाज भी नहीं निकलती।
- सवाल कमाई का नहीं पेट पालने का है । कमाई मुनाफे को कहते हैं। हम यहां मुनाफा बनाने नहीं आये हैं। बस अपना पेट पाल रहे हैं । सूखे ने पूरे परिवार को ही अलग थलग कर दिया है ।
- लेकिन गांव में तो सरकार की भी कई योजना हैं। वहां रह कर भी तो कमाया खाया जा सकता है । बड़ी मुश्किल है । जैसे दिये में तेल ना डालो तो बुझ जाता है, वैसा ही सरकार की योजना का है। बाबुओं को तेल चाहिये। अब समूचे गांव में किसान के पास कुछ नगद है ही नहीं तो वह बाबुओ को दे क्या ।
- लेकिन सरपंच व्यवस्था के जरीये भी तो काम हो रहा है । सरपंच का मतलब है पैसे के बंटवारे का पंच। कोई योजना में कितना भी पैसा आये लेकिन सरपंच तभी केस बनाता है, जब उसे पचास फीसदी कमीशन मिल जाये ।
- तो क्या खेती सिर्फ बारिश पर टिकी है । बारिश पर या कहें पैसे पर । क्योकि सिचाई की कोई व्यवस्था है नहीं। बिजली रहती नहीं है । जो मोटर पंप लगा रखे हैं उन्हें चलाने के लिये डीजल चाहिये ।
- इतनी लंबी बहस के बाद जब मैने उन बुजुर्ग का नाम पूछा तो उल्टे हंसते हुये मुझी से मेरा नाम पूछ लिया। फिर कहा, हम ब्राह्ममण हैं। मेरा नाम जगदीश प्रसाद तिवारी है। इसलिये हम आम की लकड़ी यहां बेच रहे हैं। क्योंकि इस उम्र में कोई दूसरा काम कर नहीं सकते और धर्म कोई दूसरा काम करने का मन बनने नहीं देता। किसान शुरु से ही थे । कई पीढियों से किसानी चली आ रही है । लेकिन यह कभी नहीं सोचे थे कि जमीन रहने के बाद भी किसानी नहीं कर पायेगे। और जमीन रहने के बाद भी परिवार बिखर जायेगा।
- मैं पांच रुपये जेब में डालने के लिये उठा तो वह बुजुर्ग कह उठा इस पांच रुपये को कम ना आंको। गांव में कईयो की जिन्दगी इसी में चलती है। और देश में शहर से ज्यादा गांव हैं।
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Thursday, July 23, 2009
पुण्य प्रसून बाजपेयी: कितना खतरनाक है किसान का सच
पुण्य प्रसून बाजपेयी: कितना खतरनाक है किसान का सच
2009-07-23T21:47:00+05:30
Common Hindu