Saturday, September 19, 2009

visfot.com । विस्फोट.कॉम - 65 टन सोना वापस नहीं चाहिए

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    • जो कोई 1991 में शुरू हुए भारत के उदारीकरण को जानता है वह यह भी जानता है कि उस वक्त अल्पकाल के लिए देश के प्रधानमंत्री बने चंद्रशेखर ने देश का 65 टन सोना गिरवी रखा था. भारत की इस दयनीयता का उस वक्त सभी ने रोना रोया था कि भारत को अपना सोना गिरवी रखना पड़ा. उसके बाद भारत में उदारीकरण की शुरूआत हुई और भारत ने व्यावसायिक उपलब्धियों के झंडे भी गाड़े हैं लेकिन आज तक भारत के माथे पर गिरवी रखे 65 टन कलंक की तरह इस सोने को वापस लाने की कोई कोशिश नहीं की. आज भी यह सोना जस का तस गिरवी रखा हुआ है और भारत सरकार को नहीं लगता कि इस सोने को वापस भारत लाना चाहिए.
    • चौंकानेवाली बात यह है कि इन अट्ठारह सालों में अभी तक केंद्र की किसी भी सरकार ने इसे वापस लाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है और रिजर्व बैंक भी इसे विदेशी निवेश मानकर बराबर अपने विदेशी मुद्रा खजाने में गिनता रहता है। आपको बता दें कि भारत सरकार ने विदेश में गिरवी रखे इस 65.27 टन सोने के एवज में बैंक ऑफ इंग्लैंड से जो ऋण लिया था, उसे सितंबर-नवंबर 1991 के दौरान ही लौटा दिया गया था और यह सोना अब गिरवी नहीं, बल्कि जमा के रूप में रखा गया है। 
    • लॉ फर्म के उक्त जानकार का कहना है कि तात्कालिक  जरूरत के लिए सोना गिरवी रखना जरूरी था। लेकिन अब भी अपना सोना बाहर रखने का कोई तुक नहीं है। वे तो यहां तक सवाल उठाते हैं कि रिजर्व बैंक का सारा कामकाज ब्रिटिश शासन में बने रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 से निर्धारित होता है तो कहीं ऐसा तो नहीं है कि इस अधिनियम के अंदर ही कोई प्रावधान है जिसने बैंक ऑफ इंग्लैंड को खास दर्जा दे रखा है?

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