Wednesday, December 23, 2009

हिंदी के उत्थान में विदेशियों की भूमिका | JANOKTI : जनोक्ति

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    • आत्मानंद
    • लिपियों के विशेषज्ञ विलियम कैरे ने न केवल देवनागरी के टाइप ढलवाकर मुद्रणालय की स्थापना की अपितु उत्तर भारत की अनेक भाषाओं में देवनागरी का उपयोग कर इस बात की ओर संकेत किया कि यह लिपि अधिकांश आधुनिक भाषाओं के लिए उपयुक्त है।

      उन्नीसवीं शती में हिन्दुस्तानी को कचहरी की भाषा और देवनागरी-लिपि के प्रयोग के लिए विदेशियों द्वारा श्लाघनीय प्रयत्न किये गये। इस प्रसंग में ईस्ट इंडिया कम्पनी के एक अंग्रेज सिविलयन फ्रेड्रिक जाॅन शोरे का उल्लेख करना आवश्यक होगा। इस विद्वान ने अपनी पुस्तक में कहा कि कचहरी की भाषा हिन्दुस्तानी और लिपि देवनागरी होनी चाहिए। शोरे महोदय ने समय से पूर्व नागरी लिपि को प्रश्रय देने की मांग की थी। इसके पश्चात लगभग बीस वर्ष तक किसी ने भी इस विद्वान के कथन को विशेष महत्व नहीं दिया। हिन्दुस्तानी को कचहरी की भाषा का स्थान दिलाने का श्रेय फैलन और ग्राउज को है।

    • {साभार : गगनांचल}

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