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अयोध्या : कानूनी विवाद में नए पेंच -
- शीतला सिंह
- इस मुकदमे का मुख्य प्रयोजन यह था कि वहां स्थापित रामलला मूर्ति को न्यायिक व्यक्ति न मानना क्या मंदिर पक्ष के लिए लाभकारी हो सकता है? न्यायालय का फैसला हिन्दू या मुसलमानों में से किसी के भी पक्ष में हो तो भी मूर्ति हटायी नहीं जा सकेगी, क्योंकि उसे सुनवायी का अवसर ही नहीं दिया है। यह न्याय की स्वाभाविक प्रक्रिया के विपरीत होगा कि बिना उसकी बात और तर्क सुने उसे उचित प्रतिवाद का मौका दिये उसके खिलाफ कोई निर्णय नहीं हो जाए। इसलिए जीते कोई भी लेकिन तब तक रामलला विराजमान रहेंगे, क्योंकि उन्हें सेन्ट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी पक्ष नहीं बनाया है।
- लेकिन क्या प्राणप्रतिष्ठा के अभाव में इसकी मान्यता समाप्त हो सकती है। यह प्रश्न भी विचारणीय है कि जब मूर्ति स्वत: प्रकट हुई है तो उसकी प्राणप्रतिष्ठा कैसे हो सकती थी। इसलिए इस प्राकट्य को दैविक आस्थाजनित माना जाए और इस प्रकार वह मूर्ति स्वत: देवपुरुष का स्थान ले सकती है?
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