Saturday, February 27, 2010

visfot.com । विस्फोट.कॉम - 15 हजार मछुआरे क्या मराठी माणुस नहीं हैं?

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    • राजेश सिंह, रत्नागिरी से लौटकर
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    • इन मछुआरों के रोजगार को तहस-नहस करने के पीछे एक कंपनी है जो कि 20 वर्ष पहले यहाँ आयी है। कंपनी का नाम है फिनोलेक्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड। स्थानीय लोग एवं कंपनी से पीड़ित मछुआरे बताते है कि इस कंपनी और कंपनी के मालिक को मराठा क्षत्रप शरद पवार का आशीर्वाद प्राप्त है इसलिए इन मछुआरों की व्यथा को स्थानीय समाचार पत्रों में भी जगह नहीं मिलती।
    • स्थानीय जानकार कंपनी के इन करतूतों को पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बता रहे है इनके अनुसार रनपार बंदर का 8 किलोमीटर का समुद्री किनारा है और रनपार बंदर के तीन तरफ से पहाड़ है इस 8 किलोमीटर लंबे समुद्री किनारे पर समुद्री घास मैन्ग्रोस की बहुतायत है समुद्री मछलियां इन्ही समुद्री मैन्ग्रोस के पास अंडे देने आती है रनपार बंदर का समुद्री किनारा मछलियों के अंडे देने का सबसे पसंदीदा जगह था किन्तु अब कंपनी के  मालवाहक जहाज और बार्जों के आवाजाही से रनपार बंदर के समुद्री किनारे का पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है अब जब संयुक्त राष्ट्र नें वर्ष 2010 को बायोडाईवर्सिटी इयर यानि जैव विविधता वर्ष घोषित किया है कंपनी ( फिनोलेक्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड) रनपार बंदर के जैव विविधता को ध्वस्त करने पर तुली है. चूँकि यह कंपनी मछुआरों के रोजगार को छीन रही है इसलिए मछुआरे कंपनी के विरुद्ध आवाज उठा रहे है. मछली व्यवसाय के इस धंधे के कुल 15,000  आश्रितों के आजीविका को छीनने वाली इस कंपनी में केवल 300 लोग रोजगार पाते है जिसमे 26 लोग स्थानीय यानि मराठी माणुस हैं. शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे, मनसे प्रमुख राज ठाकरे और मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण यह बताने की कोशिश करेंगे कि 15000 मछुआरे मराठी माणुस क्यों नहीं है?

      (राजेश सिंह मानवाधिकार संगठन AIHRCO के अध्यक्ष हैं और नागरिक विकल्प नामक पत्रिका के संपादक हैं. संपर्क: nagrikvikalp@gmail.com)


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