Saturday, June 12, 2010

Jagran - Yahoo! India - फिर बंदिशों पर आमादा कांग्रेस

  • tags: no_tag

    • कांग्रेस सोनिया गांधी के पिता स्टीफेनो मैइनो के संदर्भो को लेकर भी असहज हो सकती है। वह इटली के तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी की सेना में काम कर चुके हैं और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रूस के खिलाफ युद्ध में भाग ले चुके हैं। किंतु विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस को सच्चाई से मुंह नहीं फेरना चाहिए।

      स्टीफेनो के राजनीतिक आग्रहों के संदर्भो को हलके में नहीं लिया जा सकता क्योंकि वह मुसोलिनी और उनके तानाशाही शासन के कट्टर समर्थक थे। यह उन्होंने करीब तीस साल पहले एक भारतीय पत्रकार को दिए इंटरव्यू में स्वीकार किया था। उन्होंने उम्मीद जताई थी कि इटली में फिर से तानाशाही सत्ता आएगी। इसलिए स्टीफेनो को मुसोलिनी की शान में कसीदे पढ़ते देखने के लिए हमें मोरो की किताब पढ़ने की जरूरत नहीं है।

    • हममें से जो लोग जो 1975-77 में इंदिरा गांधी द्वारा थोपे गए आपातकाल के भुक्तभोगी रहे हैं, वे इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि कैसे उन्होंने संविधान को बदलकर और लोकतंत्र को उलटकर 25 जून, 1975 को तानाशाही थोप दी थी। उस रात उन्होंने राष्ट्रपति से घोषणा जारी करवाकर राजनीतिक विरोधियों का दमन शुरू कर दिया था। सरकार ने बहादुर शाह जफर मार्ग, जहां अनेक अखबारों के दफ्तर थे, की बत्ती काट दी थी ताकि अगली सुबह अखबार यह खबर प्रकाशित न कर सकें कि इंदिरा गांधी ने तानाशाही शक्तियां हासिल कर लीं। अब मोरो की पुस्तक में सोनिया गांधी को आरके धवन और सिद्धार्ध शंकर राय की बातचीत को सुनते हुए दर्शाया गया है। पुस्तक में बताया गया है कि धवन ने राय को कहा था कि अखबारों की बत्ती गुल कर दी गई है। जैसाकि ऊपर बताया जा चुका है कि उस रात सरकार ने अखबारों की बिजली काट दी थी और राय, धवन और अन्य बहुत से कुछ लोग इससे अवगत थे। यह फैसला इंदिरा गांधी के आधिकारिक निवास स्थान पर लिया गया था, जहां सोनिया और राजीव रहते थे।

      यह विश्वास करना कठिन है कि सोनिया गांधी उस रात की घटनाओं के बारे में कुछ नहीं जानती थीं। खासतौर पर इसलिए कि अपनी सास इंदिरा गांधी के साथ उनके मधुर संबंध थे और इंदिरा गांधी ही लोकतंत्र की धज्जिायां उड़ाने का फैसला ले रही थीं। हालांकि अगर मोरो यह कहने में गलती भी कर रहे थे कि सोनिया गांधी को अखबारों की बिजली काटने की जानकारी थी, तो भी क्या किताब को प्रतिबंधित करने का यह पुख्ता आधार है?

    • स्पष्टत: इन सदस्यों ने यही किया जब फिल्म में कुछ सीन हटाने और कुछ बदलने की मांग की। शुरू में कांग्रेस को चिंता थी कि कैटरीना कैफ द्वारा निभाई गई भूमिका सोनिया गांधी से मेल खाती है। खासतौर पर इसलिए क्योंकि सोनिया भी कैटरीना की तरह अंग्रेजी शैली में बोलती हैं। इसके विपरीत हिंदू देवी-देवताओं को नग्न और कामुक क्रियाओं में रत दिखाने वाले एमएफ हुसैन की कृतियों को प्रतिबंधित करने के लिए कांग्रेस ने जरा भी सक्रियता नहीं दिखाई।

      नेहरू-गांधी परिवार की किसी भी आलोचना को लेकर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं की आक्रोशित प्रतिक्रिया हमें इटली के तानाशाह मुसोलिनी के 28 अक्टूबर, 1925 में दिए गए भाषण की याद दिलाती है। मुसोलिनी ने घोषणा की थी- सबकुछ सत्ता में निहित है, सत्ता से बाहर कुछ नही, सत्ता के खिलाफ कुछ नहीं। नेहरू-गांधी परिवार के चंपुओं ने भारतीय संदर्भ में इसमें जरा-सा रद्दोबदल कर दिया है- सब कुछ परिवार के भीतर, परिवार के बाहर कुछ नहीं, परिवार के खिलाफ कुछ भी नहीं। क्या लोकतांत्रिक भारत यह स्वीकार कर सकता है?

      [ए सूर्यप्रकाश: लेखक विधि मामलों के विशेषज्ञ हैं]


Posted from Diigo. The rest of my favorite links are here.