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visfot.com । विस्फोट.कॉम - अहमदिया संप्रदाय: सबके लिए शांति के उपासक
- गुरुदासपुर के कादियान नामक कस्बे में 23 मार्च 1889 को इस्लाम के बीच एक आंदोलन शुरू हुआ जो आगे चलकर अहमदिया आंदोलन के नाम से जाना गया. यह आंदोलन बहुत ही अनोखा था. इस्लाम धर्म के बीच पहली बार एक व्यक्ति ने घोषणा की कि "मसीहा" फिर आयेंगे. मसीहा माने ईसा मसीह. इस्लाम धर्म के बीच इस अनोखे संप्रदाय को शुरू करनेवाले मिर्जा गुलाम अहमद ने अहमदिया आंदोलन शुरू करने के दो साल बाद 1891 में अपने आप को "मसीहा" घोषित कर दिया. बात सिर्फ यहीं तक नहीं रुकी. मिर्जा गुलाम अहमद ने खुद को विष्णु का आखिरी अवतार भी घोषित कर दिया.
- इस्लाम की इस धारा को इस्लाम के ही अन्य सम्प्रदाय (खासकर सुन्नी संप्रदाय) अगर मान्यता नहीं देता और उनके खिलाफत करता है तो उसका मुख्य कारण अहमदिया संप्रदाय द्वारा ईसा मसीह के प्रति उनका विश्वास. अहमदिया संप्रदाय मानता है कि ईसा मसीह शूली पर नहीं मरे थे बल्कि इजरायल के एक लुप्त हो चुके आदिवासी समाज ने शूली पर टांगने के चार घण्टे बाद उन्हें वहां से बचा लिया था और उन्हें लेकर कश्मीर आ गये थे. कश्मीर में ईसा मसीह लंबे समय तक जीवित रहे और उम्र पूरी करने के बाद बुढ़ापे में उनका निधन हुआ. यही कारण है मिर्जा गुलाम अहमद ने अपने आपको मसीह घोषित किया. इसके साथ ही हिन्दू धर्म के आराध्य विष्णु के दसवें अवतार के रूप में मिर्जा गुलाम की घोषणा भी उन्हें कट्टर सुन्नी मुसलमानों का दुश्मन बना देती है.
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