Sunday, June 6, 2010

एक पार्टी नहीं एक महिला का राज - No one party rule of a woman - www.bhaskar.com

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    • एमजे अकबर
    m j akbar
    • बंगाल में कम्युनिस्ट राज का आधार था सामाजिक स्थिरता, जिसे साठ के दशक में कांग्रेस नष्ट कर चुकी थी। बंगाल में बीते तीन दशकों के अमन-चैन ने इस सच को ढांप दिया है कि वह बंटवारे से उपजा सूबा है और वहां सांप्रदायिक तनाव की जड़ें पंजाब से भी गहरी रही हैं। मुस्लिम लीग का जन्म बंगाल में हुआ था। १९वीं सदी के बंगाली लेखन में व्याप्त मुस्लिम विरोधी तत्वों पर गौर करें तो उनके सामने पंजाबी साहित्य नाकुछ मालूम होने लगेगा।

      लाल बंगाल अब तिरंगे की ओर क्यों झुक रहा है? कई कारण हैं। सबसे बड़ा यह कि वामपंथ आज के नौजवानों के दिलो-दिमाग में पैठ नहीं बना सका, उसी तरह जैसे एक जमाने में बंगाली युवाओं के दिमाग पर उसने कब्जा किया था। एक कारण और भी है। हम बंगाल के दो ही टुकड़े जानते हैं - हिंदू बहुल पश्चिम और मुस्लिम बहुल पूर्व। सरहद ने इन्हें अलग कर दिया। अब हमारा बंगाल भी एक नए पूरब और पश्चिम में बंट गया है।

      आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि पश्चिमी बंगाल की मुस्लिम आबादी 28 प्रतिशत है। ताजा जनगणना के बाद यह 30 प्रतिशत तक जा सकती है। उनका घनत्व समान नहीं है। बांग्लादेश से सटे पूर्वी जिलों में मुसलमानों की घनी आबादी है। कोलकाता के दक्षिण, पूर्व और उत्तर में करीब 40 फीसदी मतदाता मुसलमान हैं। ममता बनर्जी की कामयाबी का बुनियादी कारण यह है कि मुस्लिम वोट वाम दलों से टूटकर उनके व्यक्तित्व की ओर खिंचे हैं।
    • दिलचस्प है कि ममता के प्रति मुस्लिमों में जैसा उत्साह है, वैसा कांग्रेस के प्रति नहीं है। जहां-जहां लेफ्ट का कांग्रेस से सीधा मुकाबला था, वहां उसे बढ़त मिली है और उसके वोटों में बीते साल के आम चुनाव की तुलना में चार फीसदी का इजाफा हुआ है।
    • तीन दशक तक अमन-चैन कायम रखने के बाद माकपा ने मान लिया कि मुस्लिम वोट तो उसकी जेब में हैं। वह इस हकीकत को नहीं समझ सका कि पोता अब दादा की बात मानने को तैयार नहीं है।

      होनी को टाला जा सकता है? लेफ्ट ने अल्पसंख्यकों के लिए नौकरी में आरक्षण लागू करना शुरू कर दिया है। पता नहीं यह कितना देर आयद और कितना दुरुस्त आयद है। हिंसा से नावाकिफ नई पौध के लिए बदलाव एक रोमांचक विचार है। वह लेफ्ट की पहल को हारे हुए जुआरी की आखिरी चाल मानते हुए खारिज भी कर सकती है। ममता ने ज्यादा मुसलमानों को चुनाव में खड़ा करके मजबूती दी है।
    • लेखक ‘द संडे गार्जियन’ के संपादक हैं।

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