Sunday, June 6, 2010

visfot.com । विस्फोट.कॉम - सिम में भी समाया चीनी ड्रैगन

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    • अनिल पाण्डेय
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    • देश का गृह मंत्रालय और खुफिया एजेंसियां चीनी कंपनियों पर सेलुलर आपरेटरों को बेचे जाने वाले उपकरणों और साफ्टवेयर में स्पाइवेयर डालने और इसके जरिए भारत की महत्वपूर्ण जानकारियों को चीन द्वारा हासिल करने की आशंका जता चुकी है. लेकिन बावजूद इसके नियमों को धता-बताकर चीन से अभी भी हर महीने लाखों सिमकार्ड भारत आ रहे हैं. सिमकार्ड बनाने वाली कंपनियों के एसोसिएशन स्मार्ट कार्ड फोरम आफ इंडिया के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि चीन से पिछले तीन महीनों (जनवरी-मार्च) में ही करीब साढ़े चार करोड़ सिमकार्ड भारत आ चुके हैं.
    • हर सिमकार्ड का एक “की नंबर” होता है यह “की नंबर” बहुत महत्वपूर्ण होता है. राजेश कुमार (बदला हुआ नाम) कहते हैं, “अगर आप के सिमकार्ड का की नंबर पता लग जाए तो बड़ी आसानी से  आप के सिमकार्ड का क्लोन भी तैयार कर सकता है. इसके लिए किसी विशेषज्ञ की जरूरत नहीं है. यह काम इलेकट्रानिक्स में बीई करने वाला साधारण सा एक छात्र भी कर सकता है.” अगर आप के सिम कार्ड का क्लोन तैयार कर लिया जाता है तो आप के फोन और लोकेशन को आसानी से ट्रेस किया जा सकता है. आप की बातें सुनी जा सकती हैं. एसएमएस पढ़ा जा सकता है और इससे दूसरों को कॉल और एसएमएस भी भेजा जा सकता है. यह की नंबर केवल दो लोगों को पता होता है. एक उस सेलुलर आपरेटर को जिसके आप उफभोक्ता हैं और दूसरा उस कंपनी को जिसने आप के सिमकार्ड का पर्सनलाइजेन किया है. अब दिक्कत यहां यह है कि भारत में जितने सिमकार्ड का इस्तेमाल होता है उसमें से करीब 30 फीसदी सिमकार्ड का पर्सनलाइजेशन चीनी कंपनियों द्वारा अपने देश में किया जाता है. यानी हमारे करोड़ों सिमकार्ड के महत्वपूर्ण डाटा चीन में हैं. भारत में कई चीनी और यूरोपीय कंपनियां सिमकार्ड बेचती हैं. इनमें से चीनी कंपनियों को छोड़कर करीब सभी कंपनियों ने भारत में अपने सिमकार्ड पर्सनलाइजेशन सेंटर स्थापित कर लिया है. चीनी कंपनियों द्वारा भारत में अपना पर्सनलाइजेशन सेंटर न स्थापित करना भी इन्हें शक के दायरे में लाता है. चीन की दो प्रमुख कंपनियों वाचडाटा और ईस्टकामपीस का सिमकार्ड के भारतीय बाजार के करीब 30 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर कब्जा है.
    • एचसीएल टेक्ऩॉलाजी के सीनियर प्रोजेक्ट मैनेजर संजय जौहरी कहते हैं, “सिमकार्ड में भी स्पाइवेयर डाल कर एक साथ करोड़ों सिमकार्ड को ब्लाक किया जा सकता है. या फिर जिस फोन में ये सिमकार्ड इस्तेमाल हो रहे हैं, उन पर पूरी तरह से नियंत्रण रखा जा सकता है.” क्या इस संदेह से इनकार किया जा सकता है कि चीन इनमें से तमाम नंबरों को ट्रैक कर रहा हो और हमारे महत्वपूर्ण लोगों की बातचीत सुन रहा हो.
    • बावजूद इसके डिपार्टमेंट आफ टेलीकम्यूनिकेशन ने आखें मूंद ली है. जिस तरह से सिमकार्ड बनाने वाली चीनी कंपनियों के हितों को बचाया जा रहा है, उससे किसी बड़े घोटाले की बू आ रही है.
    • स्मार्ट कार्ड फोरम आफ इंडिया के सचिव जगदीश पुरोहित कहते हैं, “भारत में इस समय सालाना करीब 60 करोड सिमकार्ड की मांग हैं. भारतीय कंपनियां इस मांग को पूरा करने में सक्षम हैं. बल्कि कई कंपनियां तो अपना सिमकार्ड विदेशों में निर्यात कर रहे हैं.”
    • इसके अलावा हमने वाचडाटा और ईस्टकामपीस से सिमकार्ड खरीदने वाली कंपनियों भारती एयरटेल, रिलायंस और आइडिया के कारपोरेट कम्यूनिकेशन के अधिकारियों से बात कर इस मसले पर आधिकारिक जानकारी मांगी. लेकिन किसी ने भी हमारे मेल का जवाब नहीं दिया.

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