Friday, July 24, 2009

visfot.com । विस्फोट.कॉम - अंग्रेजी कबूल है जनाब!

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    • अनिल अत्रि
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    • पिछले दिनों करीब-करीब एक साथ दो घटनाएं ऐसी घटीं, जिनसे लगा कि पहले जो अभियान हिंदी के खिलाफ आजादी के बाद से ही चलता आ रहा है, वह अब उसके साथ-साथ भारतीय भाषाओं के खिलाफ भी शुरू हो गया है। पहला मामला देश के अति प्रतिष्ठित कहे जाने वाले जेएनयू का है, जहां अध्‍ययन के लिए दाखिला देने गए छाञों से यह कहा गया कि वह हिंदी में पढ़ाई नहीं कर सकेंगे। यही नहीं उन्‍हें यहां तक कह दिया गया कि जब अंग्रेजी नहीं आती तो जेएनयू क्‍यों चले आते हो? बिना अंग्रेजी के जेएनयू का सपना भूल जाओ। जबकि दूसरे मामले में देश के उच्‍चतम न्‍यायालय स्‍कूलों में मातृभाषा पढ़ाए जाने के एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि यदि मातृभाषा पढ़ने वाले बच्‍चे क्‍लर्क भी नहीं बन सकते। यह दोनों घटनाएं ऐसी हैं, जो यह बताने के लिए काफी हैं कि इस देश को आजादी भले 1947 में मिल गई हो लेकिन मानसिक तौर पर वह आज भी गुलामी में जी रहा है।