Thursday, October 15, 2009

सृजन: कामसूत्र विवेचन : आम धारणाओं से अलग

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    • • भारतीय सभ्यता की आधारशिला चतुर्वर्गिय – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष है | मनुष्य की समस्त अभिलाषाएँ इन्हीं चारों के अन्तर्गत रहती हैं| इसमें मोक्ष अन्तिम लक्ष्य है | मनुष्य के शरीर के पोषन और संवर्धन के लिए अर्थ की; मन तुष्टि के लिए काम की; बुद्धि के लिये धर्म की और आत्मा के लिए मोक्ष की आवश्यकता पङती है | ये आवश्यकताएं अनिवार्य हैं, अपरिहार्य हैं | क्योंकि बिन भोजन-वस्त्र के शरीर कृश निष्क्रिय बन जाता है | काम बिना स्त्री का मन कुण्ठित – निकम्मा बन जाता है | बिना धर्म (सत्य, न्याय) के बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है | और बिन मोक्ष के आत्मा पतित बन जाता है |  
    • बिना शरीर के मोक्ष साधना नहीं हो सकती और मोक्ष साधना के बिना अर्थ, काम को सहयोग नहीं मिल सकता | इसलिए मोक्ष की सच्ची कामना रखकर ही अर्थ और काम का उपभोग करना चाहिए | बिना मोक्ष कामना के अर्थ और काम का उपभोग स्वार्थी और कामी लोग ही करते हैं | ऐसे लोगों को समाज, राष्ट्र का शत्रु बताया गया है | ये तो प्रकट ही है की जहां स्वार्थ और कामलोलुपता बढ जाती है, वहीं समाज और राष्ट का पतन हो जाता है |  
    • • कामशास्त्र से ही ये जाना जाता है की संभोग का सर्वोत्तम और आध्यात्मिक उद्देश्य है – पति-पत्नी की आध्यात्मिकता, मनव प्रेम और परोपकार तथा उदात्त भावनाओं का विकास| हिंदू सभ्यता की बुनियाद वेद की शिक्षा ही है | संसार से उतना ही अर्थ और काम लिया जाय जिससे मोक्ष को सहायता मिले | मुमुक्षु को उतने ही भोग्य पदार्थ को लेना चाहिए जितने के ग्रहण करने से किसी प्राणी को कष्ट ना पहुंचे |