Friday, October 9, 2009

हिंद स्वराज : इटली और हिन्दुस्तान « PRAVAKTA । प्रवक्‍ता

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    • नवभवन द्वारा प्रकाशित महात्‍मा गांधी की महत्‍वपूर्ण पुस्‍तक ‘हिंद स्‍वराज’ का ग्‍यारहवां पाठ
    hind swarajj
    • अंग्रेज गोला बारूद से पूरी तरह लैस हैं इससे मुझे डर नहीं लगता। लेकिन ऐसा तो दीखता है कि उनके हथियारों से उन्हीं के खिलाफ लड़ना हो, तो हिन्दुस्तान को हथियारबन्द करना होगा। अगर ऐसा हो सकता हो, तो इसमें कितने साल लगेंगे? और तमाम हिन्दुस्तानियों को हथियारबन्द करना तो हिन्दुस्तान को यूरोप-सा बनाने जैसा होगा।

      अगर ऐसा हुआ तो आज यूरोप के जो बेहाल हैं वैसे ही हिन्दुस्तान के भी होंगे। थोड़े में, हिन्दुस्तान को यूरोप की सभ्यता अपनानी होगी। ऐसा ही होनेवाला हो तो अच्छी बात यह होगी कि जो अंग्रेज उस सभ्यता में कुशल हैं, उन्हीं को हम यहां रहने दें। उनसे थोड़ा बहुत झगड़ कर कुछ हक हम पायेंगे कुछ नहीं पायेंगे और अपने दिन गुजारेंगे।

      लेकिन बात तो यह है कि हिन्दुस्तान की प्रजा कभी हथियार नहीं उठयेगी। न उठाये यह ठीक ही है।

    • पाठक: आप तो बहुत आगे बढ़ गये। सबके हथियारबंद होने की जरूरत नहीं। हम पहले तो कुछ अंग्रेजों का खून करके आतंक फैलायेंगे। फिर जो थोड़े लोग हथियारंबद होगें, वे खुल्लमखुल्ला लड़ेंगे। उसमें पहले तो बीस पचीस लाख हिन्दुस्तानी जरूर मरेंगे। लेकिन आखिर हम देश को अंग्रेजों से जीत लेंगे। हम गुरीला (डाकुओं जैसी) लड़ाई लड़कर अंग्रेजों को हरा देंगे।

      संपादक: आपका खयाल हिन्दुस्तान की पवित्र भूमि को राक्षसी बनाने का लगता है। अंग्रेजों का खून करके हिन्दुस्तान को छुड़ायेंगे, ऐसा विचार करते हुए आपको त्रास क्यों नहीं होता? खून तो हमें अपना करना चाहिये क्योंकि हम नामर्द बन गये हैं, इसीलिए हम खून का विचार करते हैं। ऐसा करके आप किसे आजाद करेंगे? हिन्दुस्तान की प्रजा ऐसा कभी नहीं चाहती। हम जैसे लोग ही जिन्होंने अधम सभ्यतारूपी भांग पी है, नशे में ऐसा विचार करते हैं। खून करके जो लोग राज करेंगे, वे प्रजा को सुखी नहीं बना सकेंगे।

      धींगरा ने जो खून किया है उससे या जो खून हिन्दुस्तान में हुए हैं उनसे देश को फायदा हुआ है, ऐसा अगर कोई मानता हो तो वह बड़ी भूल करता है। धींगरा को मैं देशाभिमानी मानता हूं, लेकिन उसका देश प्रेम पागलपन से भरा था। उसने अपने शरीर का बलिदान गलत तरीके से दिया। उससे अंत में तो देश को नुकसान ही होनेवाला है।

      पाठक: लेकिन आपको इतना तो कबूल करना होगा कि अंग्रेज इस खून से डर गये हैं, और लार्ड मॉले, ने जो कुछ हमें दिया है वह ऐसे डर से ही दिया है।

      संपादक: अंग्रेज जैसे डरपोक प्रजा है वैसे बहादुर भी है। गोला-बारूद का असर उन पर तुरन्त होता है, ऐसा मैं मानता हूं। संभव है, लार्ड मॉलें ने हमें जो कुछ दिया वह डर से दिया हो लेकिन डर से मिली हुई चीज जब तक डर बना रहता है तभी तक टिक सकती है।

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