Friday, October 9, 2009

visfot.com । विस्फोट.कॉम - भगवा निशान हिन्दू पहचान एक बार फिर

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    • भारतीय जनता पार्टी की सत्ता यात्रा और विचारधारा पर बहस दोनों एक साथ ही शुरू हुए थे. 1992 से 2009 तक भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभिन्न घटक दलों के बीच अनवरत रस्साकसी चली है. इस रस्साकसी के एक छोर पर वे लोग थे जो अच्छे और स्वच्छ प्रशासन को राजनीतिक जरूरत बताते हुए विचारधारा का आग्रह छोड़ने की वकालत कर रहे थे तो वहीं दूसरी ओर विचारधारा के व्यामोह में उलझे भाजपा और संघ के कार्यकर्ता सिर्फ हताशा में ऐसी बहसों से अपने आपको दूर खड़ा पा रहे थे.
    • इस पक्ष में दो तर्क दिये गये. एक तर्क यह था कि भाजपा को उसके हाल पर छोड़कर नये राजनीतिक दल का गठन कर लेना चाहिए. विहिप के नेता अशोक सिंहल इस बात के प्रबल पैरोकार थे कि भाजपा मोह छोड़ देना ही सबसे बेहतर होगा. लेकिन संघ के भीतर एक दूसरा धड़ा था जो यह मानता था कि भाजपा को ही विचारधारा पर दोबारा वापस लाने की कोशिश करनी चाहिए.
    • भाजपा में हिन्दुत्व पर वापस लौट आने की औपचारिक घोषणा तो शायद संविधान में ही की जाएगी लेकिन आडवाणी और आप्टे ने एक ही दो अलग अलग जगहों पर साफ कर दिया कि वापस लौट आने के सिवा अब उनके सामने भी कोई और रास्ता नहीं है. फिर भी, बकौल सरसंघचालक मोहनराव भागवत- "हिन्दुत्व की असली लड़ाई राजनीति के बाहर है." साफ है कि संघ के लिए राजनीतिक सक्रियता सिर्फ हिन्दुत्व की राजनीतिक ईकाई को सुदृढ़ करने से अधिक नहीं हैं. आगे जो होगा उसे वही भाजपा अंजाम देगी िजसने विचारधारा को पूरी तरह से प्रणाम कर लिया था.