Thursday, January 21, 2010

visfot.com । विस्फोट.कॉम - सांसद नहीं, बनना है सरपंच

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    • राजीव शर्मा
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    • महात्मा गांधी राष्ट्रीय गा्रमीण रोजगार गारंटी कानून ‘महानरेगा’ यही वो नाम है जिसने सरपंच को सांसद से भी बडा बना दिया है. लोगों की माने तो महानरेगा ने ही यूपीए की सरकार दुबारा बनबाई. इसमें कितनी सच्चाई है ये बहस का बिषय हो सकता है. लेकिन इतना सच है कि अब गांवों में इस योजना ने सरपंच के पद को सांसद से भी बडा बना दिया है.

      राजस्थान में इन दिनों पंचायतीराज के चुनाव हो रहे है. जहां हर कोई, हर कीमत पर सिर्फ सरपंच बनना चाहता है. कारण साफ है महानरेगा और उसके महाघोटाले.

    • कारण साफ है  गांव में होने वाला हरेक काम ग्राम पंचायत  जो करती है. चाहे पेयजल की व्यवस्था,स्वचछता का काम हो या फिर सांसद विधायक कोश से आने वाली राशि का उपयोग. किसे इंदिरा आवास देना है और किसका नाम बीपीएल की सूची में आयेगा ये सब सरपंच की मोहर निर्धारित करती है.

      बीते पांच साल को देखें तो राजस्थान में अब सरपंचों को ‘‘बोलेरो सरपंच’’ कहना शुरू कर दिया है. एक अनुमान के मुताबिक लगभग तीन चैथाई सरपंच चार पहिये के  वाहनधारी  हो गये है. उनके बच्चों  के पास मोटर साईकिल तो आम बात सी हो गई है. जबकि नरेगा को लागू हुए अभी पूरे दो साल भी नहीं हुये है.

    • पंचायतीराज के चुनावों में इस बार जिला परिषद और पंचायत समिति सदस्य बनने से कही ध्यान सरपंच बनने को लेकर है. या फिर सीधे जिला परिषद और प्रधान बनने की जुगत बिठाई जा रही है. इन सबके पीछे भी कहीं न कहीं ‘महानरेगा’ एक बडा कारण साफ नजर आ रहा है.
    • ग्रामीण क्षेत्रों से जाकर शहरी हो गये लोग भी अब गांव की ओर लौट रहे है. ऐसे प्रभावशाली लोगों ने चुनाव से पूर्व ही गांव में आकर माहौल बनाया. और अब सरपंच के प्रत्याशी बन रहे है. सरपंच बनने की ओर युवाओं का रूझान भी एक दम से बढा है. हर किसी की जुबान पर नरेगा है. सरपंच के पद की मारा मारी ने ये जरूर साबित कर दिया है महानरेगा का आगे क्या हश्र होने वाला है. क्योंकि जिस तरह सरपंच बनने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा. वो आखिर वापिस कहां से आऐगा ? कहीं महानरेगा पर ही तो निशाना नही है.

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