Saturday, May 1, 2010

पिता की कलम की तोडने के लिए पुत्र को धमकी दी - डॉ. मुनेश अरोडा :: प्रेसनोट डाट इन | आपकी भाषा आपकी खबरें

पिता की कलम की तोडने के लिए पुत्र को धमकी दी - डॉ. मुनेश अरोडा :: प्रेसनोट डाट इन | आपकी भाषा आपकी खबरें

  • आंतकवाद के खिलाफ पंजाब में खुली जंग का सामना कर चुके दैनिक समाचार पत्र पंजाब केसरी की भूमिका से सारा देश भली भाँति परिचित है। आज अगर पंजाब में हिन्दू सुरक्षित रह रहा है तो उसमें पंजाब केसरी अखबार की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। इस समाचार पत्र ने समाचार पत्र की प्रतिष्ठा के लिए व आतंकवाद की आग में अपने परिवार क� � आदरणीय लाला जगत नारायण व आदरणीय रमेश जी को शहीद करवाने के बाद भी अपनी कलम की आवाज को दबने नहीं दिया । पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के जब देश में आपातकाल लगाया था तथा प्रेस की आवाज को दबाने की कोशिश की थी तब भी इस अखबार ने ट्रेक्टर की मदद से समाचार पत्र का प्रकाशन किया था जो इस बात को दर्शाता है कि समाचार पत्र की भूमिका भारत जैसे स्वतंत्र राष्ट्र में किस प्रकार की होनी चाहिए।
  • चाहे पंजाब में आंतकवाद का दौर रहा हो या आपातकाल की विषम परिस्थितिया पंजाब केसरी ने भारतीय समाचार पत्रों के इतिहास मे एक गौरवपूर्ण भुमिका का र्नवहन किया है। शुक्रवार की रात को ईटीवी समाचार चैनल पर अश्विनी कुमार संपादक पंजाब केसरी देहली का बयान आया कि जम्मू से आतंकवादी संगठन ने पंजाब केसरी के डायेक्टर आदित्य नारायण चौपडा को जान से मारने की धमकी दी है तो क्या आजादी के 63 वर्षों के बाद भी हम भारत में समचार पत्रों की कलम की स्वंतत्रता की लडाई लड रहे है। हिन्द समाचार ग्रुप ने आदित्य नारायण चौपडा चौथी पी<h की नुमाइदंगी करते है। लाला जगत नारायण स्वयं उनके पुत्र रमेश कुमार जो कि शहीद हो चुके है। उसके बाद रमेश जी के पुत्र अश्विनी कुमार ने व उनके पुत्र आदित्य नारयण चोपडा को धमकी दिया जाना समाचार पत्रों की आजादी पर हमला है। आदित्य नारायण चौपडा वर्तमान में राजस्थान पंजाब केसरी का पूर्ण कार्यभार देख रहे है। अतः उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी राजस्थान सरकार की है। आतंकवाद देश के किसी भी हिस्से में हो वो देश की स्वंतत्रता व कलम की आजादी पर हमला है। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि देश के सभी समाचार पत्रों पर इस विषय पर एकजुटता दिखानी चाहीये। मगर आर्श्चय तो तब अधिक हुआ जब अश्विनी कुमार का यह वक्तव्य आया कि देहली पुलिस के उच्च अधिकारीयों, गृह मंत्रालय व कांग्रेस की शीर्षस्थ नेतृत्व को जानकारी दिये जाने के सात दिन बाद भी किसी ने इस बारे में जांच करने की कोशिश नहीं की।

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