Tuesday, August 25, 2009

BBC Hindi - भारत - भाजपा में अंतरकलह: एक विश्लेषण

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    • रामबहादुर राय

      वरिष्ठ पत्रकार

    • हमें यह समझ कर चलना चाहिए कि आरएसएस के बिना भाजपा का कोई अस्तित्व नहीं है. यदि आरएसएस का समर्थन न रहा, तो वह भी हिंदू महासभा की तरह छोटी सी पार्टी बन कर रह जाएगी.
    • हो सकता है नवंबर-दिसंबर में पार्टी की कमान पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के हाथ में न रहे. मेरा अपना मानना है कि इस भूमिका को निभाने के लिए सुषमा स्वराज या बाल आपटे में से कोई सामने आ सकता है.

      लेकिन ये सुधार की प्रक्रिया लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में ही चलेगी.

      ये नवंबर-दिसंबर तक चलेगी जब तक अध्यक्ष का चुनाव नहीं होता. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के लोग बहुत डरे हुए हैं और अनेक लोग अपना होशोहवास खो बैठे हैं क्योंकि उन्हे डर है कि आरएसएस उन्हें बेदख़ल कर सकता है.

    • चाहे भाजपा हो या आरएसएस, उसे तय करना है कि राष्ट्रीयता, देशभक्ति और भारतीयता को वे किस तरह से परिभाषित करते हैं.

      इस पर मतभेद हैं और अलग-अलग नज़रिए हैं.

    • दूसरी ओर हिदुत्व की विचारधार की परिभाषा नहीं हुई है - जो आरएसएस कहे वहीं हिंदुत्व है, इस पर भी अनेक लोगों ने सवाल उठाए हैं.

      जहाँ तक आरएसएस-भाजपा के रिश्तों की बात है तो आरएसएस ने स्वदेशी, राष्ट्रीयता के सवाल उठाए हैं और इन सवालों पर हिंदू-मुस्लिम संबंधों
      का भी साया है.

    • (बीबीसी संवाददाता अतुल संगर के साथ बातचीत पर आधारित)

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