Wednesday, September 16, 2009

शिल्पकला के प्रणेता भगवान विश्वकर्मा

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    • कर्म ही पूजा है, के सिंद्धात का प्रतिपादन करने वाले भगवान विश्वकर्मा की कल जयंती है. उनकी जयंती देश के औद्योगिक, तकनीकी तथा वैज्ञानिक विकास के रूप में मनायी जाती है. इस पर्व का उद्देश्य भगवान विश्वकर्मा द्वारा मानव जाति के लिये किये गये उपकारों का स्मरण करके उन्हे श्रद्धासुमन अर्पित करना है.
    • भगवान विश्वकर्मा की पत्नी ब्रम्हवादिनी के गर्भ से मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी तथा देवज्ञ नामक पांच पुत्र हुये जो क्रमश: लोहा, लकड़ी, तांबा, पीतल, पत्थर और सोने-चांदी का कार्य करते थे. पंचकला में निपुण विश्वकर्मा की संतानोें को पांचाल ब्राह्मण के रूप में जाना जाता है. वेदों के अनुसार सतयुग में स्वर्गलोक का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया था. जहां देवों के राजा इंद्र का शासन हुआ करता था.
    • त्रेतायुग में रामायणकाल में सोने की लंका का जिक्र है, जिसके बारे में किवदंती है कि भगवान शिव ने पार्वती से विवाह करने के उपरांत भगवान विश्वकर्मा से एक भवन बनाने का आग्रह किया. उन्होंने बड़े जतन से सोने की लंका का निर्माण किया.
    • पुराणों के अनुसार विश्वकर्मा ने द्वापर युग में भगवान कृष्ण की सुरम्य द्वारकापुरी का निर्माण किया था, जिसे कृष्ण ने अपनी राजधानी बनाया और लंबे समय तक यहां राज किया.
    • कौरवों और पांडवों की राजधानी हस्तिनापुर का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था.
    • विष्णु को चक्र, शिव को त्रिशूल, इंद्र को वज्र, हनुमान को गदा और कुबेर को पुष्पक विमान विश्वकर्मा ने ही प्रदान किये थे.

       

      हिन्दुओं के महान ग्रन्थ रामायण के अनुसार सीता स्वयंबर मे जिस धनुष को श्रीराम ने तोड़ा था, वह भी विश्वकर्मा के हाथों ही बना था और जिस रथ पर सवार हो कर Þोष्ठ धनुर्धर अर्जुन संसार को भस्म करने की शक्ति रखता था उसके निर्माता भगवान विश्वकर्मा ही थे.