Wednesday, October 7, 2009

इतिहास का छिपा सच

  • tags: no_tag

    • महर्षि वाल्मीकि को आराध्य मानने वाला वाल्मीकि समाज एक ऐसा वर्ग रहा है जिसने एक लंबे कालखंड में जिस संघर्ष, अदम्य साहस, बलिदान व अपमान का जीवन जिया है उसका उदाहरण और कहींमिलना मुश्किल है। यक्ष प्रश्न तो यह है कि आखिरकार यह वर्ग जाति के रूप में कैसे बना?
    • प्राचीन भारत की ग्राम प्रधान सभ्यता में शौचालय नहीं हुआ करते थे। राजमहल की इमारतों में कहीं भी शौचालय नहीं हैं। अत: मैला ढोने के कर्म की आवश्यकता नहीं थी। इस धारणा की पुष्टि गांधीवादी अप्पासाहब पटवर्धन के द्वारा रत्नागिरी जेल से 7 दिसंबर 1932 को महात्मा गांधी को भेजे पत्र से भी होती है, जिसमें अप्पासाहब ने रहस्योद्घाटन किया है कि ब्रिटिश शासक जेलों में ऐसे कैदियों को सफाई कर्म करने के लिए मजबूर करते हैं जिनका पारिवारिक पेशा कभी भी सफाई कर्म का नहीं रहा है तथा उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार किया जाता है।
    • जेल से बाहर सत्याग्रहियों द्वारा मराठी में पंफलेट प्रकाशित करके अछूतों की नई जमात खड़ी करने के इस ब्रिटिश षड्यंत्र का पर्दाफाश किया गया।
    • इस विषय पर डा. अंबेडकर ने जो गहन अध्ययन व शोध किया है वह संभवत: अन्य किसी के द्वारा नहीं किया गया है। उन्होंने अपनी पुस्तक 'अछूत कौन व कैसे' में लिखा है कि वेदों में सामाजिक छुआछूत का कोई उदाहरण नहीं मिलता है। उन्होंने आश्यर्य कर देने वाले तथ्यों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि भारत सरकार की घोषित सूची में 429 जातियां अस्पृश्य मानी गई हैं, जबकि ग्रंथों में इस प्रकार की जातियों का कोई उल्लेख नहीं है। डा. अंबेडकर ने 'राइटिंग एंड स्पीचेज' में सामाजिक अवधारणा के संबंध में लिखा है-सच्चाई यह है कि परिवार ही मूल आधार है, उपजाति नहीं। यदि विभिन्न उपजातियों में कुल व गोत्र समान हैं तो उपजातियों में यद्यपि सामाजिक भिन्नता मिलेगी, लेकिन नस्ल एक होगी।

      वंशकुल व गोत्र के आधार पर यदि विचार करें तो यह स्पष्ट है कि वाल्मीकि वर्ग अपने आप में अनेक जातियों का समूह है, जिनको काम की समानता के कारण एक मान लिया गया ंहै।

    • कुल वंश तथा गोत्र के आधार पर विश्लेषण करने पर तथा विभिन्न इतिहासकारों एवं लेखकों द्वारा किए गए अनुसंधान से यह निष्कर्ष निकलता है कि वाल्मीकि समाज की उपजातियां बनाफर क्षत्रिय हैं। इनके स्वाभिमानी पूर्वजों ने अपने धर्म को बचाने के लिये मैला उठाने तथा सुअर पालन का कार्य स्वीकार किया। बनाफर क्षत्रिय का संबंध महाभारत काल के वीर घटोत्कच से माना जाता है, जिनको भगवान श्रीकृष्ण ने क्षत्रिय महावीर की उपाधि दी थी। बनाफर क्षत्रिय सेनापति, सेनानायक तथा मंत्री के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं।
    • [सुरेंद्र गुप्ता: लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं]