Sunday, December 6, 2009

सत्य का राजनीतिक निरादर

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    • 'आहत इतिहास' राष्ट्र अस्मिता को कमजोर करता है। राष्ट्रीय अस्मिता का विस्फोट इतिहास को समृद्ध करता है। 6 दिसंबर 1992 को उत्तार, दक्षिण, पूरब, पश्चिम-पूरा भारत एक था। विंध्य, हिमाचल, यमुना और उच्छल जलधि में ज्वार था। पंजाब, सिंधु, गुजरात, मराठा, द्रविण, उत्कल, बंग अयोध्या में ही थे। परशुराम के केरल से भी जय श्रीराम की यात्राएं चलीं, न कोई राज्य बचा, न कोई क्षेत्र। राष्ट्र जीवमान सत्ता है। व्यक्ति की ही तरह राष्ट्र की भी अपनी अस्मिता होती है। व्यक्ति अपनी अस्मिता अक्सर प्रकट करते रहते हैं, लेकिन राष्ट्र अपनी अस्मिता के प्रकटीकरण में धीरज रखते हैं। भारत ने भी धीरज रखा। श्रीराम भारत का मन हैं, वे भारत की मर्यादा हैं, शील हैं, विनय हैं। राष्ट्र ने लंबी प्रतीक्षा की। सवाल राष्ट्रीय अस्मिता बनाम इस्लामी आक्रामकता का था, बावजूद इसके करोड़ों श्रद्धालुओं को अपमान ही मिला। सहिष्णुता और धीरज की हद होती है।

      6 दिसंबर का ध्वंस सृजन की भावभूमि का मंगल आचरण था। भारत का अवनि अंबर आनंदमगन था। आहत इतिहास को सात्वना मिली, श्रीराम मंदिर अब राष्ट्रीय अपरिहार्यता है। श्रीराम मंदिर के सवाल को ठंडे बस्ते में नहीं डाला जा सकता। यह मसला राजनीतिक नहीं है। सवाल विदेशी इस्लामी आक्रामकता बनाम राष्ट्रीय अस्मिता का है। बाबर और बाबरी मस्जिद विदेशी आक्रामकता के पर्याय हैं। कनिंघम ने दर्ज किया, ''अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर तोड़े जाते समय हिंदुओं ने जान की बाजी लगा दी। इस लड़ाई में 1 लाख 74 हजार हिंदुओं की लाशें गिर जाने के बाद ही मीर बाकी तोपों के जरिए मंदिर को क्षति पहुंचा सका।'' यह लड़ाई लगातार चली। आईने अकबरी कहती है कि अयोध्या में राम जन्मभूमि की वापसी के लिए हिंदुओं ने 20 हमले किए। आलमगीरनामा में जिक्र है, ''रमजान की सातवीं तारीख को शाही फौज ने फिर अयोध्या की जन्मभूमि पर हमला किया। 10 हजार हिंदू मारे गए।'' लिब्रहान ने अपनी भीमकाय रिपोर्ट में यह कथानक नहीं लिखा। भारतीय इतिहास की शुरुआत बाबरी मस्जिद से ही नहीं होती।

    • मिर्जाजान अपनी किताब 'हदीकाए शहदा' में कहते हैं, ''सुलतानों ने इस्लाम के प्रचार और प्रतिष्ठा की हौसला अफजाई की। कुफ्र को कुचला। फैजाबाद और अवध को कुफ्र से छुटकारा दिलाया। जिस स्थान पर मंदिर था वहा बाबर ने एक सरबलंद मस्जिद बनाई। मौलवी अब्दुल करीम ने 'गुमगश्ते हालाते अयोध्या अवध' में बताया कि राम के जन्मस्थान व रसोई घर की जगह बाबर ने एक अजीम मस्जिद बनवाई। यही मौलवी उस जमाने में कथित बाबरी मस्जिद के इमाम थे। कमालुद्दीन हुसनी अल हुसैनी अल मशाहदी ने 'कैसरूल तवारीख' में यही बातें कहीं।
    • विलियम फोस्टर की लंदन से प्रकाशित किताब 'अर्ली ट्रेवेल्स इन इंडिया' में यूरोपीय यात्री फिंच के अनुसार मान्यता है कि यहा राम ने जन्म लिया। आस्ट्रिया के टाइफेंथेलर 1766 से 1771 तक अवध रहे। वह लिखते हैं कि बाबर ने राम मंदिर को ध्वस्त किया। इसी के स्तंभों का प्रयोग करके मस्जिद बनाई। ब्रिटिश सर्वेक्षणकर्ता (1838) मोंट गुमरी मार्टिन के अनुसार मस्जिद में इस्तेमाल स्तंभ राम के महल से लिए गए।
    • एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में भी सन् 1528 से पूर्व बने एक मंदिर का हवाला है। एडवर्ड थार्नटन के अध्ययन के अनुसार बाबरी मस्जिद पुराने हिंदू मंदिर के 14 खंभों से बनी। बाल्फोट के मुताबिक अयोध्या की तीन मस्जिदें तीन हिंदू मंदिरों पर बनीं। पी. कार्नेगी 'हिस्टारिकल स्केच आफ फैजाबाद विद द ओल्ड कैपिटल्स अयोध्या एंड फैजाबाद' में मंदिर की सामग्री से बाबर द्वारा मस्जिद निर्माण का वर्णन करते हैं। गजेटियर आफ दि प्राविंस आफ अवध में भी यही तथ्य हैं। फैजाबाद सेटेलमेंट रिपोर्ट (1880) में भी यही तथ्य हैं। इंपीरियल गजेटियर आफ फैजाबाद (1881) में भी यही है। बाराबंकी डिस्ट्रिक्ट गजेटियर (1902) में बाबर द्वारा जन्मस्थान मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाने का वर्णन है। यही बात फैजाबाद डिस्ट्रिक गजेटियर (1905) में व रिवाइज्ड फैजाबाद डिस्ट्रिकट गजेटियर (1960) में भी है। आत्मसमर्पण बड़ी कसक देता है। कैलाश पर चीन का कब्जा है। अयोध्या के श्रीराम मंदिर पर बाबरी की नेमप्लेट। मथुरा, काशी और सोमनाथ पर औरंगजेब, लोदी और गजनवी की मिल्कियत। भारत कैसे जिए? प्रतिपल अपमान, प्रतिक्षण कसक, बहुसंख्यक समाज पर अल्पसंख्यकवाद की दबंगई, अपने ही देश में अपनी ही बेइज्जती।
    • [हृदयनारायण दीक्षित : लेखक उप्र सरकार के पूर्व मंत्री हैं]

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