Wednesday, February 10, 2010

वर्णाश्रम की 'मल' संस्कृति!

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    पंकज श्रीवास्तव
    • भेजा शोर करता है

      पंकज श्रीवास्तव

      एसोसिएट एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर

    • डिंडीगुल जिले के बाटलागुंडु थाना क्षेत्र में है गांव मेलाकोइलपट्टी। दलित नौजवान पी.सादियान्दी, उम्र 24 साल, इसी गांव का है। पोंगल की तैयारियां जोरों पर थीं। सादियान्दी भी घर की साफ-सफाई और चमकाने में जुटा था। 7 जनवरी को वो पुताई के लिए चूना खरीदने करीब के कस्बे जा रहा था कि रास्ते में सात थेवर नौजवानों ने उसे घेर लिया। उन्होंने सादियान्दी के साथ गालीगलौच की। उसकी पिटाई की। फिर दो लोगों ने जबरदस्ती उसका मुंह खोला और तीसरे ने एक छड़ी से उठाकर मानव मल उसके मुंह में डाल दिया। इतना ही नहीं, उसके मुंह पर भी मल पोत दिया गया। सादियान्दी ने किसी तरह पास के एक तालाब में कूदकर जान बचाई।
    • अपराध? सादियान्दी का अपराध सिर्फ ये था कि वो पांव में जूते पहनता है। जबकि दलितों की पिछली पीढ़ी ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थी। जाहिर है, सादियान्दी गांव में पीढ़ियों से चले आ रहे एक कानून को तोड़ रहा था। थेवर नौजवानों को यही 'दुस्साहस' बरदाश्त नहीं हुआ।
    • ठहरिये..इस घृणित दास्तान को किसी पुराने चश्मे से न देखिए। कहानी में एक पेच है। जिन थेवर नौजवानों ने ऐसा किया, वो हिंदू नहीं हैं। वे धर्म बदलकर ईसाई हो चुके हैं। लेकिन उनका सवर्ण आतंकी दिमाग, प्रभु यीशू के दरबार में भी सक्रिय है। सादियान्दी के अपराध को देखकर वे करुणा, प्रेम, दया के सारे उपदेश भुला बैठे।
    • इस पूरे प्रकरण में एक सवाल बेहद परेशान करने वाला है। आखिर, थेवर नौजवानों में दंड देने का ऐसा विचार आया कहां से। दलितों पर अत्याचार की लोमहर्षक कहानियों से इतिहास भरा पड़ा है। लेकिन जो धर्म बदलने की हद तक चले गए, उनमें घृणा का ऐसा भाव! कहीं उन्हें ग्वांतानामो की जेलों से तो ये प्रेरणा नहीं मिली, जहां दंड के ऐसे ही तरीके ईजाद करके अमेरीकी झंडे की शान बढ़ाई जाती है।
    • वैसे अंग्रेजी मीडिया ने भी इसे मुद्दा बनाने में कोई रुचि नहीं दिखाई। पूछा जाना चाहिए कि क्या ये चंडीगढ़ की रुचिका के साथ हुए अन्याय से कम गंभीर मामला था? क्या सादियान्दी को न्याय नहीं मिलना चाहिए। फिर चुप्पी का मतलब क्या है?
    • वर्ण श्रेष्ठता का दंभ, आदमी को आदमी नहीं जानवर बना देता है।...माफ कीजिए, ऐसा कहना जानवरों का अपमान है। आपने कब देखा कि किसी जानवर ने दूसरे जानवर को अपना मल खाने पर मजबूर किया?

      संत रविदास कह गए हैं-


      जात-जात में जात है जस केलन कै पात


      रैदास न मानुख जुड़ सकै, जब तक जात न जात।


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