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Jagran - Yahoo! India - Editorial News
- असल में, जो भाग्यवादी हैं उनकी यही सोच है कि किसी संत-महात्मा की शरण में जाने से उनका लोक-परलोक सुधर जाएगा और शायद उनका भाग्योदय हो जाए। जबकि शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख है कि अंत:करण की शुद्धि से ही आत्म कल्याण संभव है। दुर्योग से देश में हजारों ऐसे संत-महात्मा हैं, जो धन कमाने के लिए धर्म के नाम पर तरह-तरह के प्रपंच और पाखंड रचते हैं और अनपढ़ ही नहीं, सबसे ज्यादा शिक्षित ही इनके सांझे में फंसते हैं।
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आश्चर्य की बात है कि साधु-संत हिंदू संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए न जाने कितने प्रवचन करते हैं, लेकिन क्या आज तक कोई संत समाज ऐसे ढोंगी महात्माओं-संतों के विरोध में खड़ा हुआ है, जो सीधे-सीधे धर्म को हानि पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं? क्या उनका यह उनका धर्म और दायित्व नहीं है कि लोगों की आस्थाओं और धर्म से घिनौना खिलवाड़ करने वाले ऐसे शैतान और पाखंडी संतों के जालों को छिन्न-भिन्न किया जाए। आखिर कब तक धर्म पर यह चोट सहते रहेंगे?
[स्थानीय संपादकीय: दिल्ली]
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